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________________ संधिस इतिहास २॥ सेठका फँचा मन्दिर में भी एक 'रसकरण्ड भावकाचार' चौपाईबद्ध सं० १७७० का रचा हुआ है। सम्भव है, यह दोनों अन्य एक हो । नमूना देखिये "परम चरनधर के परन, परम सुमंगल दाय । हरन करन मद शिवरमन, नमन कर शिरमाय । म समंतभद्र ई जु भद्रभाव योग हैं, निवृत्य आपही भये कुम्याधि के प्रयोग है। नमात नैक शीसही प्रचंड तेज जास भो, विदारि ईश पिंड चंद्रनाथ विव भास भो ॥ २ ॥ जिनवाच रहस्य कुसुंभ रंग, रंगे सरस सोहन । सब गुन संयुत नन्द तमु, फूलचन्द मतिवंत ॥१॥ तिन भाष्यो हम थान त, धरम राग परसाय। भाषा रखकरण्ड की, करो सकल सुखदाय ॥२॥ मन्दिर श्री हरदेव को, नयर लिवाली थान। स्थान सुखद जिहमें भई, भाषा अति सुख दान । स्वामि समंतभद मतिधारी, रखकरण रयो हितकारी। मूल तासको भाव सुहायो, संघहि पयालाल दिलायो।" पं० नेमिचन्द्र ने 'देवेन्द्रकीर्ति की जकड़ी' म० १७०० मेरची थी। पं० मानसिंह भगवती ने सं० १७३१ में 'द्रव्यसंग्रह पद्यानुवाद किया था।
SR No.010194
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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