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________________ १७. [हिन्दी जैन साहित्य का जगतराय अथवा जगतराम ने सं० १७२१ में 'पद्मनन्दिपञ्चीसी' छन्दबद्ध रची थी। उनके रचे हुए आगमविलास और सम्यक्व. कौमुदी नामक ग्रन्थ भी हैं । एक पद देखिये "जिन दरसन पाये, आज नैना सुफल भये ॥ जिन० ॥ रोम रोम आनन्द भयो है, अशुभ कर्म गये भाज ॥ जिन० ॥ काल अनादि में निस दिन भवको, सरो न मन को काज ॥ जिन० ॥ 'राम' दास प्रभू जही माँगत हैं. मुक्ति सिम्बर को राज ॥ जिन० ॥" इनके पद छोटे और भक्तिरसपूर्ण होते हैं। देवदत्त दीक्षित ने भ० सुरेन्द्रभूषग (सं० १७५८ ) के उपदेश से 'चन्द्रप्रभ पुराण' छन्दबद्ध रचा था, जिसकी अधूरी प्रति जसवन्तनगर के म न्दर में मौजूद है । उसका मंगलाचरण निम्न प्रकार है और उसमें लिखा है कि 'भा जिनेन्द्रभूषणोपदेष्ट श्री दीक्षितदेवदत्तकृते "सब विधि हित विधि उदित सरव सिधि मुदित अंकधर । वंचकता वरजित सुभाव संतत विसंकहर । पर अभेदि जो सुन गुनत उर सुप विस्तारहि । सरनागत मन भव्य जीव जन गन जो तारहि ॥ अस जिन अगम प्रवर पढ़त हरत जनमरु मरन ।" बुलाकीदासजी का जन्म आगरे में हुआ था। वह गोयलगोत्री अग्रवाल दि० जैन श्रावक थे। उनके पूर्वज बयाना ( भरतपुर) में रहते थे। उनके पितामह श्रवणदास बयाना छोड़कर आगरे में आ बसे थे। उनके पुत्र नन्दलालजी को सुयोग्य देखकर पं० हेमराजजी ने उन्हें अपनी कन्या व्याह दी थी, जिसका नामा
SR No.010194
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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