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________________ [हिन्दी बेन साहित्य का ___ इस ग्रन्थ में उन्होंने धर्म तत्त्व का निरूपण विविध प्रकार के सुभाषित और स्तुतिपूरक छंदों में किया है। रचना सामान्यतः अच्छी है । नमूना देखिये "शीतलनाथ भजो परमेश्वर अमृत मूरति जोति वरी । भोग संजोग सुत्याग सबै सुपदायक संजम लाभ करी ॥ क्रोध नहीं जहाँ लोभ नहीं कछू मान नहीं नहिं है कुटिलाई। हरि ध्यान सम्हारि सजोसुभ केवल जोध कहै वह बात खरी ॥" इसकी एक प्रति श्री दि० जैन मन्दिर सेठ के कूचा के शास्त्रभण्डार में मौजूद है। 'धर्मसरोवर' के अतिरिक्त 'सम्यक्त्व कौमुदी भाषा' ग्रन्थ को भी उन्होंने सं० १७२४ में रचा था। पहला प्रन्थ आषाढ़ में समाप्त किया और उसके सात आठ महीने बाद दूसरा ग्रन्थ रचा था । इसके पहले 'प्रीतंकर चरित्र' (१७२१) और 'कथाकोष' ( १७२२ ) नामक ग्रन्थ कवि जोध ने रच लिये थे। प्रवचनसार, भावदीपिकावनिका (गद्य) और ज्ञानसमुद्र उपरान्त की रचनायें हैं। बाबू ज्ञानचन्द्रजी ने उनकी इन रचनाओं का उल्लेख किया है। (दि० जै० भा० ग्रं. ना०, पृ० ४-५) ____ आचार्य लक्ष्मीचन्द्रजी श्वेताम्बरीय खरतरगच्छ के एक अच्छे विद्वान् और कवि प्रतीत होते हैं। दिगम्बर जैनाचार्य श्री शुभ चन्द्रजी कृत 'ज्ञानार्णव' ग्रन्थ का आपने पद्यबद्ध भाषानुवाद किया था। उसमें आपने अपना परिचय निम्न प्रकार लिखा है "ज्ञान समुद्र अपार पय, मति नौका गति मन्द । पै केवट नीको मिल्यौ, आचारज शुभचन्द ॥४७॥ ताके वचन विचारि के, कीनै भाषा छन्द । भातम लाभ निहारि मनि, आधारज लक्ष्मीचन्द ॥१८॥
SR No.010194
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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