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________________ ३ जैन मक्त कवि : जीवन और साहित्य जिनोदयसूरि विवाहल' ___ 'विवाहला' शब्दको व्याख्या करते हुए श्रीअगरचन्द नाहटाने लिखा है, "जीवनके उल्लासदायक अनेक प्रसंगोंमे विवाह, अत्यन्त आनन्द मंगलका प्रसंग है। इसलिए कवियोने इस प्रसंगका वर्णन बड़ी ही सुन्दर शैलीमे किया है। विवाहके वर्णन-प्रधान काव्योंको सज्ञा 'विवाह', 'विवाहलउ', 'विवाहलो' और 'विवाहला' पायी जाती है।" ___ इन 'विवाहला काव्यों में, जैनाचार्योका किसी कुमारी कन्याके साथ नहीं, अपितु दीक्षाकुमारी अथवा संयमश्रीके साथ विवाह रचा गया है। इस तरह ये 'विवाहला' रूपक काव्य है। दीक्षा लेनेवाला साधु दुलहा और दीक्षा अथवा 'संयमश्री' दुलहिन है । 'जिनोदयसूरि विवाहला' मे भी आचार्य जिनोदयका दीक्षाकुमारीके साथ विवाह हुआ है । अर्थात् इस काव्यमे जिनोदयके दीक्षा लेनेका वर्णन है। यह एक ललित एवं सरस काव्य है । गुर्जरधरारूपो सुन्दरीके हृदयपर रत्नोंके हारको भाँति पह्मणपुर नामके नगरमें, एक बार श्रीजिनकुशलसूरि आये। वे अपने ज्ञानके प्रकाशसे, भव्यजनोंके मोहान्धकारको दूर करनेमें समर्थ थे । "अस्थि गूजरधरा सुंदरी सुंदरे, उरवरे रयण हारोवमाणं । लच्छि केलिहरं नयरु परहणपुरं, सुरपुरं जेम सिद्धामिहाणं ॥ अह अवरवासरे पल्हणे पुरवरे, भविय जण कमल वण बोहयंतो। पत्तु सिरि 'जिणकुसलसूरि' सूरोवमो, महियले मोह तिमिरं हरंतो ॥३॥" सेठ रुद्रपाल अपने परिवारसहित सूरिजीकी वन्दना करने गया। सूरिजीने उसके पुत्र समराको देखकर कहा कि यह तुम्हारा समरा कुमार सम्पूर्ण श्रेष्ठ गुणोसे युक्त है और सुविचक्षण भी है। नेत्रोंको आनन्द देनेवाले अपने इस पुत्रका विवाह, हमारी दीक्षाकुमारीके साथ कर लो। १. यह, 'जैन ऐतिहासिक काम-संग्रह' मे, वि० सं० १६६४ में, पृ० ३६०-३६६ पर प्रकाशित हो चुका है। इसने ४४ पद्य है। २. श्री अगरचन्द नाहटा, 'विवाह और मंगल काव्योकी परम्परा, भारतीय साहित्य. डॉ. विश्वनाथप्रसाद सम्पादित, आगरा विश्वविद्यालय, हिन्दी विद्यापीठ, प्रथम अंक, जनवरी १६५६, पृ० १४० ।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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