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________________ हिन्दी जैन भक्ति-काव्य और कवि नाम 'मुलू' था, 'काशी नागरी प्रचारिणी पत्रिका'के खोज-विवरणमे उनका नाम मलूक दिया हुआ है, जो उसीमें अंकित 'पुष्पदन्तपूजा' की अन्तिम प्रशस्तिसे असत्य प्रमाणित हो जाता है ।' 'मुलूको पूत'का स्पष्ट अर्थ है 'मुलूका पुत्र । मलूकका पुत्र होनेके लिए एक और 'क'को आवश्यकता थी। जहांतक भाऊके रचनाकालका सम्बन्ध है काशी नागरी प्रचारिणी पत्रिका के सम्पादकोने उसको 'अविदित' कहा है। इस विषयमे कोई स्पष्ट लेख अभीतक मालूम नहीं हो सका है। वैसे उनको 'आदित्यवारकथा' एक ऐसे गुटकेमे निबद्ध है, जिसका लेखन-काल सं० १७६३ है। अब 'नेमिनाथ रास' नामको रचना और प्राप्त हुई है, वह जिस गुटके में संकलित है, उसका लेखन वि० सं० १६९६ में समाप्त हुआ था। इससे स्पष्ट है कि भाऊ इमसे पूर्व ही हुए होंगे। अभीतककी खोजोमे इनकी चार रचनाओंका पता लगा है : 'आदित्यवारकथा', 'पाश्वनाथ कथा', 'पुष्पदन्त-पूजा' और 'नेमिनाथ रास' । चारों ही भक्तिसे सम्बन्धित है । आदित्यवार-कथा इसका दूसरा नाम 'रविव्रत कथा' भी है। जैन-परम्परामें 'रविव्रत कथा' सम्बन्धी विपुल साहित्य है। वैसे यह है तो अतसे सम्बन्धित, किन्तु इसमे भगवान् पार्श्वनाथकी भक्ति ही प्रधान है। गुणधरको रत्नोंका संचय देनेवाले भगवान् पार्श्वनाथके शासनदेव और देवी, धरणेन्द्र तथा पद्मावती ही थे । उन्हींकी प्रेरणासे गुणधरके सब भाइयोंने रवि-व्रत करना प्रारम्भ किया, और रवि-प्रत पूजाके लिए उन्होंने एक विशाल जैन मन्दिरका निर्माण करवाया। 'रविनत' में 'रविव्रत-पूजा' ही प्रमुख है। भाऊकी 'आदित्यवार कथा' अत्यधिक लोकप्रिय हुई। जयपुरके लूणकरजीके मन्दिरके गुटका नं० ८७ और बड़े मन्दिरके गुटका नं० ९९ मे उसको एक-एक प्रति निबद्ध है। बधोचन्दजीके मन्दिरके ९ गुटकोंमें और ठोलियोके तीन गुटकोमे पृथक्-पृथक् प्रतियां लिखी हुई है। इनमें बधीचन्दजीके मन्दिरका गुटका 'नं. १५' सबसे पुराना लिखा हुआ है । वह सं० १७५९ मे लिखा गया था। और सब प्रतियां इसके बादकी हैं। गुटका नं० १३६ में इस कथाके सबसे अधिक पद्य सन्निहित है, अर्थात् १५४ । प्रारम्भमे चौबीस तीर्थंकरोंकी फिर शारदाको स्तुति की गयी है, १. काशी नागरी प्रचारिणी पत्रिकाका त्रैवार्षिक पन्द्रहवाँ खोज विवरण, Appen dix II. पृष्ठ ८६ ।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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