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________________ जैन भक्त कवि : जीवन और साहित्य २९९ जयपुरको भट्टारकीय गद्दीका आरम्भ हुआ था। यहां पहले सुरेन्द्रकीतिसे मतलब है । वे 'सुरेन्द्रकीति मुनीन्द्र' कहलाते थे। आदित्यवार कथा ने इस कथाका निर्माण वि० स० १७४० को गोपाचलगढ़मे रहकर किया था। इस कथाको वीरसिह जैन इटावासे सन् १९०६ मे प्रकाशित कर चुके है । कथाकी रचना गोपाचलगढ़के जैसवाल शाह जसवन्तके भाई भगवन्तकी धर्मपत्नीको प्रार्थनापर की गयी थी। कथाका सम्बन्ध जिनेन्द्रकी भक्तिसे है । कतिपय पंक्तियाँ है, "कामी देश बनारस ग्राम । सेठ बड़ो मतिसागर नाम ॥ तासु घरनि गुण सुन्दर सती । सात पुत्र ताके सुभमती ॥ सहसकूट चैत्यालयो एक । आये मुनिवर सहित विवेक ॥ आगम सुनि सब हरषित भये । सबै लोक वंदन को गये ॥" पद ___इनके लिखे हुए विविध पद महावीरजी अतिशयक्षेत्रके एक प्राचीन गुटकामे संकलित है। जिनेश्वर पार्श्वनाथको भक्तिमे लिखा हुआ एक पद है, "जै बोलो पाश जिनेश्वर की ॥ जुगल नाग जिहिं जरता राख्या, पदवी दी फणीश्वर की ॥ बाल पणे जिहिं दीष्या लीनी, लक्ष्मी छोड़ि नरेश्वर की ॥ केवलज्ञान उपाय भयो है, जो ही सिद्ध मुनीश्वर की ॥ कीर्ति सुरेन्द्र नमैं तसु पद कू, नित प्रति पूजि गणेश्वर की ॥" सुरेन्द्रकीत्तिके पदोमे आध्यात्मिक होलियोकी छटा मोहित करनेवाली है। गोरी सुमति अपने पति चेतनके साथ होली खेल रही है, "श्रातम ग्यान तणी पिचकारी, चरचा केसरी छोरो री। चेतन पिय पै सुमति तिया तुम, समरस जल मर छोरो री॥
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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