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________________ जैन भक्त कवि : जीवन और साहित्य परम पुरुष प्रणमौ प्रथम रे, श्री गुर गुन पाराधौरे । ग्यान ज्यान मारिगि लहै, होई सिधि सब साधो रे। भाई नर मव पायो मिनख को॥" इस जीवने होरा-जैसे जन्मको यों ही गंवा दिया, भगवान्का भजन नहीं किया, "हा हा हासी जिन कौरे, करि करि हासी आनौ रे। हीरौ जनम निवारियो, बिना भजन भगवानौ रे॥ पढ़े गुनै भर सरदहै रे, मन वच काय जो पीहारे । नीति गहै अति सुख लहै, दुख न ब्यापै ताही रे ॥ माई नर भव पायौ मिनख हो॥" ५५. कुअरपाल (वि० सं० १६८४ ) कुंअरपाल कवि बनारसीदासके अनन्य मित्र थे। जिन पांच साथियोंमे बैठकर बनारसीदास परमार्थ-चर्चा किया करते थे, उनमे कुंअरपालका भी नाम है।' बनारसीदासके उपरान्त कुअरपाल सर्वमान्य हो गये थे। पाण्डे हेमराजने उन्हे 'कोरपाल ग्याता-अधिकारी' कहा है। महोपाध्याय मेघविजयने 'युक्ति-प्रबोध' में उनकी सर्वमान्यता स्वीकार की है। कविने स्वयं 'समकित बत्तीसी' में 'पुरि पुरि कंवरपाल जस प्रगट्यो' लिखा है। १. रूपचन्द पंडित प्रथम, दुतिय चतुर्भुज नाम । तृतिय भगौतीदास नर कौरपाल गुनधाम ॥ धर्मदास ये पंच जन, मिलि बैठे इक ठौर । परमारथ चरचा करें, इनके कथा न और ॥ नाटकसमयसार, प्रशस्ति, पद्य, २६-२७, पृ० ५३७ । २. बाल बोध यह कीनी जैसे, सो तुम सुणहु कहूँ मै तैसे । नगर मागरे मै हितकारी, कारपाल ग्याता अधिकारी ॥ पाण्डे हेमराज, प्रवचनसारकी बालबोध टीका, पद्य चौथा । ३. महोपाध्याय मेघविजय, युक्तिप्रबोध, ऋषभदेव-केसरीमल श्वेताम्बर-संस्था, रतलाम, पद्य २-८ के नीचेकी टीका। ४. परि परि कंवरपाल जस प्रगटचौ. बह बिध ताप बंस बरणिज्जह । घरमदास जस कंवर सदा धनि, बउसाखा बिसतर जिम कोजइ॥ कुँअरपाल, समकित बत्तीसी, जैसलमेर में कुंभरपालके लिए लिखा गया गुटका, ३१वॉ पद्य।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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