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________________ १८३ जैन भक्त कवि : जीवन और साहित्य भाषाओं के शब्दोंका समावेश हुआ है। यह एक मौलिक कृति है। नाटक समयसार 'नाटक समयसार' बनारसीदासको सर्वोत्कृष्ट रचना है। इसका निर्माण आगरेमें वि० सं० १६९३, आश्विन सुदी १३ रविवारके दिन हुआ था। उस समय बादशाह शाहजहाँका राज्य था। ____'नाटक समयसार में ३१० सोरठा-दोहे, २४५ सवैया-इकतीसा, ८६ चौपाई, ३७ तेईसा सवैया, २० छप्पय, १८ कवित्त, ७ अहिल्ल और ४ कुण्डलिया है । कुल मिलाकर ७२७ पद्य होते हैं। ___ 'नाटक समयसार'का मुख्य आधार है आचार्य अमृतचन्द्र (९वीं शताब्दी विक्रम ) को 'आत्मख्याति' टीका, जो आचार्य कुन्दकुन्दके प्राकृतमें लिखे गये 'समयसारपाहुड'पर, संस्कृत कलशोंमें लिखी गयो थी, और राजमलजी पाण्डे (१६वीं शताब्दी विक्रम ) की 'बालबोधिनी' टीका, जो हिन्दी-गद्यमें रची गयी थी। किन्तु 'नाटक समयसार केवल अनुवाद-मात्र नहीं है, उसमे पर्याप्त मौलिकता है। 'आत्मख्याति' टोकामें केवल २७७ कलयो हैं, जबकि 'नाटक समयसार में ७२७ पद्य है। अन्तका 'चौदहवां गुणस्थान अधिकार' तो बिलकुल स्वतन्त्र रूपसे लिखा गया है। प्रारम्भ और अन्तके १०० पद्योंका भी 'मात्मख्याति' टीकासे कोई सम्बन्ध नहीं है। जिनका सम्बन्ध है वे भी नवीन हैं। 'कलश' का अभिप्राय तो अवश्य लिया गया है, किन्तु विविध दृष्टान्तों, उपमा और उत्प्रेक्षाओसे ऐसा रस उत्पन्न हुआ है जिसके समक्ष कलश फीका जंचता है। 'नाटक समयसार' साहित्यका ग्रन्थ है जब कि 'समयसारपाहुई और उसको टोकाएं दर्शनसे सम्बन्धित हैं। 'नाटक समयसार'में कविको भावुकता प्रमुख है, जब कि 'समयसारपाई में दार्शनिकका पाण्डित्य। 'समयसार' और 'नाटक' ___ अपने स्वभाव व गुण-पर्यायोंमें स्थिर रहनेको 'समय' कहते हैं । छहों द्रव्य - जोव, अजीव, धर्म, अधर्म, आकाश और काल - अपने गुण-पर्यायोमें स्थिर रहते है, अतः वे सब 'समय' कहलाते हैं। उन सबमें 'आत्म-द्रव्य' (जीव ) ज्ञायक १. 'भाषा प्राकृत संस्कृत, त्रिविध सुसबद समेत' बनारसी नाममाला, दिल्ली, तीसरा पक्ष । २. नाटक समयसार, बम्बई, प्रशस्ति, पय ३६-३७, पृ० ५४० । ३. वही, प्रशस्ति, पब ३९वा, पृ० ५४१ ।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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