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________________ ( ७२ ) - उ० देव चले, मूर्ति न चले । १८ प्र० देव कवला हारी किम्बा रोमाहारी? उ० देव कवलाहारी, मूर्ति रोमाहारी। १९ प्र० देव अकषायी किंवा सकषायी ? उ० देव अकषायी, मूर्ति सकषायी। २० प्र० देव शुक्ल लेशी, किम्बा कृष्ण लेशी । उ० देव शुक्ल लेशी मूर्ति कृष्ण लेशी। २१५० देव तेरवें चौदवें गुण ठाणे किम्वा प्रथमगु० ? उ० देव तेरवें चौदवें गुण ठाणे, मूर्ति प्रथम गु० २२ म० देव केवली किम्वा छमस्थ ? उ० देव केवली, मूर्ति छमस्थ । २३ प्र० देव उपदेश देवे किम्वा न देवे ? उ० देव उपदेश देवे, मूर्ति न देवे ॥ २४ प्र० देव तीसरे चौथे आरे किम्बा पांचवें आरे ? उ०देव तीसरे चौथे आरे, मूर्ति पांचवें आरेघनी। २८ वजन कितने उत्ककितने ? उ० देव जघन २० वीस, उत्कृष्टे १७० एक सौ सत्तर और मूर्तियें लाखों हैं घर २ में भरी है । इयादि फिर 'जिन पडिमा जिन सारखी ' यह किस न्याय से कहते हो ? खैर उनकी श्रदा के अधीन है।
SR No.010192
Book TitleGyandipika arthat Jaindyot
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParvati Sati
PublisherMaherchand Lakshmandas
Publication Year1907
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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