SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ . ( ३५ ) हिंसा में धर्म कहते हैं इस वास्ते उनकी हिंसा में धर्म कहना असत्य है तो फिर हम तुम को पूछेगे कि यह क्या बुद्धि की विकलता है कि बड़े २ जीव अर्थात् मृगादि मारने में हिंसा है और लघु जीव अर्थात् मूषक की कीटक आदि मारने में दोष ( हिंसा ) | नहीं हैं । जैसे कि मन्दिर सञक गृह (म कान ) बनवाने में पंजावे लगाये जाते हैं। तो वहां स्थूल जीवों के घणे प्राण नाश होते हैं तो सूक्ष्म जीवों की क्या बात कहें जैसे तुम ने ९ नवम परिच्छेद में लिखा हैं, कि || “ मन्दिर बनवाने में पर्वत को चीर के शिलादि के स्तम्भ आदि बनवाने में दोप नहीं वलकि सम्यक्त्व की शुद्धता है ” फिरतुमने | इस पर हेतु दिया है कि वैद्य ( हकीम)।
SR No.010192
Book TitleGyandipika arthat Jaindyot
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParvati Sati
PublisherMaherchand Lakshmandas
Publication Year1907
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy