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________________ ( २९५ ) । - - उत्तर पक्षी-अरे ! तुझे समझ नहीं पड़ता होगा क्योंकि सूत्रों में तो संक्षेप मात्र गूढार्थ है और मैंने कुछक बादर करके बात रूप लिखा है । तदपि कोई सावध वचन आदिक तथा सूत्र के न्याय वाक्य उत्थापक रूप तथा सूत्र को दूषण भृत कथन उपयोग सहित अर्थात् जान के तो लिखा नहीं है । और जो मेरी भूल चूक से यत्किं. चित् न्यूनाधिक लिखा गया हो तो बुद्धि||मान पुरुष कृपा करके शुद्ध कर लेवें और मेरी अल्पबुद्धि को देख कर भूल चूक माफ कर देवें इति हेम । और कई एक पुरुषों को, प्रचलित विविध प्रकार के मतों को देखकर और कई तरह के भ्रम जनक वाक्यों को सुन सुना कर यह संदेह उत्पन्न होरहा -
SR No.010192
Book TitleGyandipika arthat Jaindyot
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParvati Sati
PublisherMaherchand Lakshmandas
Publication Year1907
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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