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________________ ( २२४ ) - से भी है परन्तु यह पाठ सूत्रानुसार ठीक है ॥ और फिर दो वार पूर्वक विधि से “ नमोत्थुणं " पढे ॥ इति समायक विधिः और जो समायक पडिकमणे का अवसर न होय तथा समायक पडिकमणा आवता न होय तो थोड़े काल का आश्रव का त्याग अर्थात् संवरही करले अथवा एक दो नवकार की माला ही प-लेवे और चौदह नेम का स्वरूप जानता होय तो चौदह नेम यथा शक्ति से करे जैसे कि मैं १ आज इतने सुचित्त उपरंत न खाऊंगा और २ इतने के उपरन्त न खाऊंगा इत्यादि । अथवा आज भाड़ का भुना न खाऊंगा, अथवा इतनी हलवाई की दुकान के उपरन्त वस्तु न खरीदूंगा, अथवा आज अमुक वाणिज्य न करूंगा,
SR No.010192
Book TitleGyandipika arthat Jaindyot
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParvati Sati
PublisherMaherchand Lakshmandas
Publication Year1907
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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