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________________ ( २१६ ) - और जो प्रत्यक्ष न होय तो देव गुरु की तर्फ भाव अर्थात् श्रुति से नमस्कार करे ॥ यथा तिखुतो अयाहिणं पयाहीणं करि करिबन्दामित्ता नमोस्सामी सकारेमी समाणेमी कल्लाणं मंगलं देवियं चेइयं पज्जवास्सामी मत्थ एण बन्दामी ॥९॥ इति ॥ अथ बीज मंत्रम् ॥ _ नमो अरिहंत्ताणं, नमो सिद्धाणं, नमो आयरिआणं, नमो उवज्झायाणं, नमो लोप सब्ब साहूणं, एसो पंचनमक्कारो, सब्ब पावप्याणासणो मंगलाणं च सब्वेसिं, पढ़मं हवई मंगलं ॥ १॥ एहना ९ पद ८ संपदा ६८ अक्षर जिस में ७ अक्षर गुरु और ६१ अक्षर लघु इति ॥ अरिहंतो मे देवो जाव जीव सुसाहूणं गुरुणं जिन पनत्तं तत्तं ए समत्तं मे गहियं । । -
SR No.010192
Book TitleGyandipika arthat Jaindyot
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParvati Sati
PublisherMaherchand Lakshmandas
Publication Year1907
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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