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________________ - - | ४वंभ ५निस्पृहा इन पांच महाव्रतों को अङ्गीकार करे और इन पांच महा व्रतों की संपूर्ण विधि देखनी हो तो सदवैकालिक सूत्र अध्ययन ४ में देखतेगी और इस विधि पांच महा व्रत पालने वाले नर वा नारी को जैन का साधु वा साध्वी कहते हैं और जो पुरुप सम्पूर्ण पांच आश्रव का यागी न होय यानि पांच महाव्रतों का धारी न होय परन्तु | गृहस्थाश्रम में ही रह कर पूर्वक षटकाय हिंसा रूप कर्म को यथा शक्ति देशव्रत अर्थात् थोड़ा सा ही मोटे २ आश्रव सेवने का त्याग करे |तिस को बारहवती श्रावक कहते हैं सोई अब बारह व्रतों का स्वरूप सूत्र उपासग दशा जी तथा आवश्यक के अनुसार लिखते हैं। अथ १२ व्रत अंग सात्मा अथ प्रथमाड । नुव्रत प्रारम्भः । सो प्रथम व्रत में श्रावक च -
SR No.010192
Book TitleGyandipika arthat Jaindyot
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParvati Sati
PublisherMaherchand Lakshmandas
Publication Year1907
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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