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________________ (६ ) | विषय विकारादि आरम्भ से विरक्त होगा। और ४ चतुर्थ अपने विकारादि अवगुणोंका पश्चातापी होगा । और ५ पंचम आरम्भके त्याग स्वरूप ब्रत (प्रत्याख्यान) में उद्यमवान् होगा । और ६ षष्ट अशुद्ध संकल्पों की निवृत्ति वाला होगा। और ७सप्तम क्षमा दया रूप गुण का लाभ होगा। और ८ अष्टम जो गृहस्थी को धर्मकार्य के निमित्त में प्रभात से सन्ध्या तक और संध्या से प्रभात तक जो २ करना योग्य है सो तिसका जानकार होगा तस्मात् कारणात् द्वितीय भाग का बांचना बहुत श्रेष्ठ है । (१) पाठक लोकों को विदित हो कि इस परोपकारी ग्रन्थ को मुख के आगे वस्त्र रख करअर्थात् मुख ढांप कर पढ़ना चाहिये - - - - - -
SR No.010192
Book TitleGyandipika arthat Jaindyot
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParvati Sati
PublisherMaherchand Lakshmandas
Publication Year1907
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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