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________________ ( ११३ ) - - - - अल्प मौल्य वा बहु मौल्य हो तैसाही ग्रहण करे सो यह तो द्रव्य निर्दोष और भाव निर्दोष सो ऐसा वहु मूल्य भी न होय कि जो अजान मनुष्य को द्रव्यधारक का विश्वास होय तथा चोर पीछा करे अथवा स्वभाव में मान प्रकट होय और ऐसा अल्प मूल्य निःसार भी न होय कि जिससे स्वभाव तथा परजन को दुर्गछा उपजे इत्यर्थः और ३ तीसरे उपाश्रय अर्थात् स्थान निदाप (साँ) साधु के निमित्त मकान बनवाया न होय तथा मोल लिया न होय फिर गृहस्थी के वर्त्तने से जियादा होय तो उसकी आज्ञा से ग्रहण करे सो यह तो द्रव्य निदोप, और भाव निर्दोप, सो ऐसा चित्रशाली आदिक न होय कि जिससे मन अनंग (कामदेव ) और विकारादि भजे - - - -- - - -
SR No.010192
Book TitleGyandipika arthat Jaindyot
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParvati Sati
PublisherMaherchand Lakshmandas
Publication Year1907
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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