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________________ 7 ( १०६ ) मन्मथ रहे न जगेबिन जहा एकनरनार || तथा श्लोक गुहायांहरिर्यत्र वासं करोति, प्रशस्तो न तत्रास्ति वासो मृगाणाम् ॥ गृहे यत्रनारी निवासंकरोति, प्रशस्ती न तत्रास्ति वासो मुनीनाम् । १ । अर्थ (गुहायां ) जिस गुफा में (हरिर ) शेर रहता हो ( प्रशस्त ) भला नहीं उस गुफा में मृगों को रहना क्योंकि प्राणों के नाश होने का कारण है इसी तरह जिस गृह में नारी रहती हो उसगृह (घर) में ( मुनीनाम् ) साधुओंको रहना ( प्रशस्त ) भला नहीं ब्रह्मचर्य के नाश होने का कारण है ऐसे ही स्त्री को पुरुष के पक्ष में समझलेना ॥ (२) दूसरी वाड़ ब्रह्मचर्य की शीलवान पुरुष केवल स्त्रियों की मंडली में कथा व्याख्यान
SR No.010192
Book TitleGyandipika arthat Jaindyot
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParvati Sati
PublisherMaherchand Lakshmandas
Publication Year1907
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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