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________________ ( ८८ ) पूर्वपक्षी - जैसे कि महावीर स्वामी जी के आगे फूलों के बिछौने विछे थे और देव दुन्दुभी बजा कर थी ॥ उत्तरपक्षी - वे तो तीर्थङ्कर देव थे इसलिये उनकी अतिशयित (अत्यन्त ) महिमा प्रकाशित हो रही थी और तुम सामान्य साधु की वैसी अतिशय रूप महिमा किस न्याय से करते हो ? पूर्वपक्षी तब तो तीर्थङ्कर देव थे परन्तु अब पञ्चम काल में तीर्थङ्कर देव तो हैं नहीं तो फिर सामान्य साधु की ही महिमा करके जिन मार्ग को दिपावै हैं ॥ उत्तरपक्षी - अरे ! भाई ! यह तेरा कहना कैसे प्रमाण हो क्योंकि श्री ५ सुधर्म स्वामीजी, श्री ५ महावीर स्वामीजी के पाठ धारी जो थे,
SR No.010192
Book TitleGyandipika arthat Jaindyot
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParvati Sati
PublisherMaherchand Lakshmandas
Publication Year1907
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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