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________________ परिय वंड मंडार के संस्थापक जिनभद्रसरि की परम्परा से रहा है। ये अच्छे विद्धवान थे। संस्कृत के तो प्रकाण्ड पंडित थे जिन्होने मं० १६२५. मिगसर वदी १२ को आगरे में अकबर की सभा में तपागच्छीय बुद्धिनागर से गात्रार्थ कर विजय प्राप्त की थी। "विशेष नाममाला", "संबपट्टक वृति", "मताभर अवचूर्ग" आदि उनकी संस्कृत न्चनाएँ हैं। मं० १६२२ वैसाख शुक्ल १५ को जिनचन्द्र मूरि ने इनकी उपाध्य पढ़ प्रदान किया था। कवि ने स्थान स्थान पर जिनचन्द्रसूरि का स्मरण किया है। मं० १६४६ की माव कृष्णा चतुर्दगी को जालोर में अनान कर ये स्वर्ग यिधारे । __ इनके जन्म और जीवनवृत्त के संबंध में जानकारी का अभाव है। पन्तु इनकी कुछ रचनाएं, गुजरात में बाम कर पाठण में रची हुए प्राप्त हैं। इससे स्पष्ट है कत्रि का गुजरात मे पनिष्ट संबंध रहा है। इनकी हिन्दी, राजस्थानी रचनाओं में गुजराती के अत्यधिक प्रभाव को देखते हुए संभव है कवि गुजगत के ही निवामी न्हे हो। श्री मो० ८० देसाई ने इनकी १६ रचनाओ का उल्लेख किया है । १ साधुकीति भक्त कवि थे। विशेषतः स्तुति, स्तोत्र, स्तवन और पदों की रचना की है। कुछ हिन्दी रचनाओं का परिचय यहाँ दिया जाता है। 'सत्तरभेदी पूजा प्रकरण' : कृति की रचना अहिलपुर पाठग में सं० १६१८ श्रावण शुक्ल ५ को हुई थी । २ इसकी दूसरी प्रति जयपुर के ठोलियो के दिगम्बर जैन नन्दिर में गुटका नं० ३३ में निबद्ध है। "चूनड़ी" की एक प्रति सं० १६४८ की लिखित जयपुर के ठोलियों के जैन मन्दिर में गुटका नं० १०२ में संकलित है । “राग माला" की प्रति भी उपर्युक्त मन्दिर के गुटके नं० ३३ में निबद्ध है। "प्रमाती" राग देशाख में रचित यह एक लघु रचना है । "शत्र जय स्तवन"-पत्रहवीं शताब्दी के प्रथम चरण की रचित कृति है । ४ इनका आदि-अन्त देखिए "पय प्रणमी ने, जिणवरना शुम भाव लई । पुडरगिरि २ गाइमु गुरन सुपसाउन लई॥" १ जन गूर्जर कविओ, भाग १, पृ० २१६-२२१ : भाग ३, बण्ड १, पृ० ६६९ ७००, खंड-२, पृ० १४८० २ अणहलपुर गांति नब नुव राई, नो प्रभु नवनिधि सिधि वाजे । संवत् सोल जठार श्रावण मुंदि । पंचमि दिवसि समाजड ॥३॥ जैन गुर्जर कविओं, भाग, पृ० २२० ३ जैन-गूर्जर कविकों, भाग १, पृ० २२१ - . ४ वही
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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