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________________ प्राक्कथन __ अन्य अहिन्दी भाषी प्रदेशों की तरह गुजरात में भी आज से शतियों पूर्व हिन्दी के व्यवहत होने के साहित्यक एवं ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध हैं। अपनी व्यापकता, प्रगतिशीलता एवं लोकप्रियता के कारण ही हिन्दी समस्त देश को एक सूत्र में पिरोने का कार्य करती आ रही है । गूर्जर-जैन कवियों ने भी हिन्दी की इस व्यापक शक्ति को पहचान कर उसके प्रति अपना परम्परागत मोह दिखाया है। इन कवियों की हिन्दी में विनिर्मित साहित्य-सम्पदा सदियों से अज्ञात या उपेक्षित रही है । इस साहित्य सम्पदा का उद्घाटन, परीक्षण एवं साहित्योचित मूल्यांकन करने का यह मेरा विनम्र प्रयास है। प्रवन्ध को इस रूप में प्रस्तुत करने में मुझे जिनसे सतत प्रेरणा सर्वाधिक मार्गदर्शन तथा स्नेह प्राप्त हुआ है उन अपने गुरुदेव डॉ० अम्बाशंकर जी नागर को मैं सर्वाधिक ऋणी हूं। उनकी सहानुभूति के अभाव में इस प्रवन्ध का इस रूप में पूरा होना कदाचित् संभव न होता । मैं उनके प्रति अपनी हार्दिक कृतज्ञता प्रकट करता हूं। इसके अतिरिक्त भावों को औपचारिक रूप देना संभव भी तो नहीं । डॉ. नागरजी के अतिरिक्त मुझे अनेक संस्थाओं से सहायता प्राप्त हुई है। विशेषकर अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर, राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर, राजस्थान शोध संस्थान, जोधपुर, साहित्य शोध विभाग ( महावीर भवन ), जयपुर, श्री आचार्य विनयचन्द्र ज्ञान भण्डार, जयपुर, साहित्य संस्थान, विद्यापीठ, उदयपुर, लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर, अहमदाबाद, गुजरात विद्या सभा, अहमदावाद, गुजरात विद्यापीठ, अहमदाबाद, हेमचन्द्राचार्य ज्ञान भण्डार, पाटण, हेमचन्द्राचार्य पुस्तकायल, पाटण, श्री फतेसिंहराव सार्वजनिक पुस्तकालय, पाटण, जैन मण्डल पुस्ताकालय, पाठण, पाटण आस-साइन्स कॉलिज पुस्तकालय आदि संस्थाओं के हस्तलिखित एवं प्रकाशित पुस्तकों से मैंने लाभ उठाया है। इन विविध संग्रहों के अधिकारियों एवं कार्यकर्ताओं का मैं कृतज्ञ हूं। उन्होंने अत्यन्त सौजन्यपूर्वक प्रतियों को देखने तथा उनका उपयोग करने की सुविधा मुझे प्रदान की है।
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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