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________________ जैन गूर्जर कवियों की हिन्दी कविता २९६ - विवाह में गाये जाने वाले गीतों की संज्ञा 'मंगल' दी गई हैं। हिन्दी, राजस्थानी और बंगला में 'मंगल' संजक अनेक काव्य मिलते हैं, संभवतः वे इसी परम्परा की देन हैं। राजस्थानी काव्य ‘रुकमणी मंगल' अत्यन्त प्रसिद्ध लोक काव्य है । महाकवि तुलसी ने भी पार्वती मंगल, 'जानकी मंगल' आदि की रचनाएँ की हैं। आलोच्य युगीन जैन-गूर्जर कवियों की रचनाओं में 'मंगल' संज्ञक रचनाएँ भी अधिकतः प्राप्त नहीं होती। जिनहर्ष की 'मंगल गीत' एक रचना प्राप्त है । इसमें सिद्धों, अरिहन्तों तथा मुनिवरों की मंगल स्तुति की गई है। इस दृष्टि से समय सुन्दर की भी 'चार मंगल गीतम्' 'मंगल गीत रचनाएँ उल्लेखनीय हैं ।१ प्रभाति, रागमाला आदि प्रातःकाल गाए जाने वाले गीतों को 'प्रभाति' संना दी गई है। ऐसी रचनाओं में साधुकीर्ति की 'प्रभाति' उल्लेखनीय है । 'रागमाला' संजक रचनाओं में विभिन्न राग-रागनियों के नामों को सुग्रथित किया गया है। आलोच्य युगीन जैन गूर्जर कवियों की रचनाओं में 'रागमाला' नामक दो कृतियों का उल्लेख किया गया है। प्रथम कुवर कुशल भट्टार्क की 'रागमाला' तथा दूसरी साधुकीति की 'रागमाला'। ऐसी रचनाओं में इन कवियों का संगीतशास्त्र का गहन ज्ञान एवं संगीत प्रेम स्पष्ट दृष्टिगत होता है। कुवरकुशल रचित 'रागमाला' में तो उनका संगीत-शास्त्र का आचार्यत्व भी सिद्ध हो गया है । देवविजय रचित "भक्तामर रागमाला काव्य' भी एक ऐसी कृति है। कुछ रचनाएं 'बधाया', 'गहूंली' आदि नाम से भी मिलती हैं। आचार्यों के आगमन पर बधाई रूप में गाये गीत 'बधावा' हैं तथा आचार्यों के स्वागत के समय उनके सम्मुख चावल के स्वस्तिक आदि की 'गहूंली' करते समय तथा उनके गुणादि के वर्णन में गाये गीतों की संज्ञा 'गहूँली' है। कवि धर्मवर्धन ने इस प्रकार की रचनाएँ अधिक की हैं। उनकी 'जिनचन्द्रसूरि गहुंली', 'जिनसुखसूरि गहुँली' तथा 'पार्श्वनाथ बधावा' आदि कृतियां इस दृष्टि से उल्लेखनीय हैं ।२ (३) धर्म-उपदेश आदि की दृष्टि से पूजा : 'जैनागम रायपसेणीय सूत्र' में सत्रह प्रकार की पूजनविधि का वर्णन मिलता है। इस प्रकार की पूजा के लिए संस्कृत श्लोक रचे जाते थे । धीरे-धीरे ये १. समयसुन्दर कृत कुसुमांजलि, संगा० अगरचन्द नाहटा; पृ० ४८१-८२ । २. धर्मवर्धन ग्रंथावली, संपा० अगरचन्द नाहटा; पृ० २०६; २४१ तथा २५० । .
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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