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________________ जैन गुर्जर कवियों की हिन्दी कविता कवियों ने आश्चर्य अभिव्यक्त किया है । यशोविजय जी के शब्दों में- " मायारूप वेल से आच्छादित "भव अरवी " के बीच मूढ़ मानव अपने ज्ञान - चक्षु बन्द क सो रहा है"-- :२४ "विकसित माया वेलि घरि भव-अरवी के बीच । सोवत है नित मूढ़ नर, नयन ज्ञान के मीच ||३१|| १ और उसकी विषय लोलुपता का नग्न चित्र प्रस्तुत करते हुए कहा है कि मानव विषय-वासना में रत हो अपना ही अकल्याण कर रहा है । उसी तरह जैसे कुत्ता हड्डी को चवाता है, उसके मुंह में चुभने से खून निकलता है पर उस अपने ही खून को हड्डी का रस समझ कर स्वाद अनुभव करता है " चाटे निज लाला मिलित, शुष्क हाड ज्युं श्वान | तेसे राचे विषय में, जउ निज रुचि अनुमान ॥ ६१ ॥ २ अज्ञान और माया ही जीव को भ्रमित करते हैं । माया बड़ी भयानक है । जो इसके चक्कर में पड़ा वह शाश्वत सुख से हाथ वो बैठता है । कवि के शब्दों में माया की भयानकता देखिए- "माया कारमी रे, माया म करो चतुर सुजान । माया वाह्य जगत विलुधो, दुःखियो थाय अजान | जो नर मायाए मोही रह्यो; तेने सुपने नहिं सुखठाण ||३ माया की भयानकता के अनेक कवियों ने बड़े मार्मिक वर्णन किये हैं । आनंदघन ने कबीर की तरह ही माया को ठगिनी बताते हुए सम्पूर्णं विश्व को अपने नागपाश में बांध लेने वाली कहा है |४ रहस्यवाद : आध्यात्मिकता को उत्कर्ष सीमा का नाम रहस्यवाद है | भावमूलक अनुभूति रहस्यवाद का प्राण है । दर्शन का क्षेत्र विचारात्मक अनुभूति में है । यह एक ऐसी अनुभूति है, जो साधक के अन्तर में उद्भूत होकर अखिल विश्व को उसके लिए ब्रह्ममय वना देती है अथवा उसे स्वयं को ही ब्रह्म बना देती है । यहां बुद्धि का क्षेत्र हृदय का प्रेय वन जाता है । प्राणी मात्र में ब्रह्म का आभास होने लगता है अथवा समस्त प्राणी ही परमात्मा बन जाते हैं ।५ १. गूर्जर साहित्य संग्रह भाग १, समता शतक २. वही ३. गूर्जर साहित्य संग्रह, भाग १, पृ० १७७-७८ ४. आनंदघन पद संग्रह, पद १६, पृ० ४५१ 4. Radhakamal Mukerji introduction to theory and art of Mysticism p. 7
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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