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________________ आलोचना-खंड "तु पुरुषोत्तम तुहि निरंजन, तु शंकर वड भाग । तु ब्रह्मा तु बुद्धि महाबल, तुहि देव वीतराग ॥"? ज्ञानानंद जी ने भी सर्वत्र इसी प्रकार की उदारता एवं अमाम्प्रदायिकता का परिचय दिया है "अवधू वह जोगी हम माने, जो हमकु सवगत जाने । ब्रह्मा विष्णु महेसर हम ही, हमकु ईमर माने ॥१॥"२ कवि गुण विलास ने भी अपनी "चौवीसी" रचना में उदार, समदर्गी एवं सर्व धर्म ममन्वयी विचारधारा अभिव्यक्त की है । "ऋपभजिन स्तवन" में कवि प्रभु की स्तुति करता हुआ कहता है "आदि अनादि पुरुष हो तुम्ही विष्णु गोपाल, शिव ब्रह्मा तुम्ही में सरजे, माजी गयो भ्रम जाल ॥"३ खण्डन-मण्डन की प्रवृत्ति धार्मिक क्षेत्र में यह प्रवृत्ति मूलतः दो रूपों में आई है--- (2) बाह्याडम्बगे के विरोध रूप में तथा (१) अन्य सम्प्रदायों के विरोध रूप में। (१) बाह्याडम्बगे का विरोध : कवि ज्ञानानद ने कबीर की तरह धर्म के क्षेत्र में मिथ्या बाह्याचारों का खंडन किया है। हिन्दू और इस्लाम दोनो धर्मावलवियो की कवि ने खबर ली है। परमात्मा के सच्चे रूप को न किसी ने जाना है और न किसी ने बताया है। योगी नाम धारियों की खबर लेते हुए कवि ने कहा है - "जटा वधारी भस्म लगाइ, गंगातीर रहाया रे । ऊरध वाह आतापना लेइ, योगी नाम धराया रे ॥" ब्राह्मण पंडितों के लिए कहा है "शासतर पढ़के झगड़े जीते, पंडित नाम रहाया रे ॥" मीया और सुन्नियों को भी कवि ने नहीं छोड़ा है--- "सुन्नत करचे अल्ला बंदे, सीया सुन्नी कहाया रे । वाको रूप न जाने कोई, नवि केइ बतलाया रे ॥"४ कवि यशोविजय ने धार्मिक वाह्याचार को अधर्म का कुगति कहा है१. भजन संग्रह, धर्मामृत, पृ० ५६ । २. वही, पृ० १२ । ३. चौवीसी - वीसी संग्रह, प्रका० आणंदजी कल्याणी। ४. भजन संग्रह, धर्मामृत, पृ० २१ ।
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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