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________________ १७४ परिचय-खंड परम्परा का चरमोत्कर्प है। इनका आचार्यत्व बड़ा व्यापक और प्रौढ दिखता है। आचार्य कुंअर कुशल का 'लखपति जससिन्यु' नामक ग्रंथ हिन्दी की रीति ग्रंथों की परम्परा में कई अमावों को दूर करता है। यह नथ 'काव्य प्रकाश को आदर्श मानकर निर्मित हुआ है।"१ इस ग्रंथ में महाराव लखपतसिंह के सभी पक्ष प्रकाश में आ गये हैं । महाराव के शौर्य एवं ऐश्वर्य वर्णन का एक प्रसंग ब्रष्टव्य है "कछपति देशल राउ कै, तषत तेज बलवीर । महाराव लखपति मरद, कुंअर कोटि कोटीर ॥२॥ बड़े कोट किल्ला बड़े, वड़ी तोप विकराल । वड़ी रौस चिहु और वल, जवर बड़ी जंजाल ॥" गुणविलास : (सं. १७९७ आसपास) ये सिद्धिवर्धन के शिष्य थे। इनका जन्म नाम गोकलचन्द था। इनके सन्बन्ध में विशेष इतिवृत्त प्राप्त नहीं। इनकी एक कृति 'चौवीसी संवत् १७६७ की जेसलमेर में रचित प्राप्त है ।२ गुजराती भाषा प्रभावित इनकी चौवीसी के स्तवन गुजरात में विशेष प्रचलित हैं। इस दृष्टि से का कवि का गुजरात में दीर्घकाल तक रहना सिद्ध हो जाता है। विभिन्न राग-रागनियों में रचित 'चौवीसी' भक्ति एवं वैराग्य भावना की दृष्टि से सुन्दर कृति है। कवि की दृष्टि सदैव उदार, समदर्शी एवं सर्वधर्म समन्वय की रही है। चौत्रीजी के स्तवन छोटे पर भाववाही हैं। कवि की असाम्प्रदायिक शुद्ध भावानुभूति एवं भक्त की-सी हार्दिक अभिलाषा का एक उदाहरण द्रष्टव्य है "अव मोहीगे तारो दीनदयाल सब हीमत में देखें, जीत तीत तुमहि नाम रसाल । आदि अनादि पुरुष हो तुम्हीं विष्णु गोपाल; शिव ब्रह्मा तुम्हीं में सरजे, माजी गयो भ्रमजाल मोह विकल भूल्यो भव मांहि, फयो अनन्त काल, गुण विलास श्री ऋषभ जिनेसर, मेरी करो प्रतिपाल ॥" . इसमें ब्रजमापा का मार्दव एवं माधुर्य सप्ट नजर आता है। कहीं कहीं गुजराती का प्रभाव भी अवश्य रहा है। - १. कुंअर चन्द्रप्रकाशतिह, भुज (कच्छ) की ब्रजभाषा पाठशाला, पृ० ३१ । २. जैन गूजर कविओ, भाग २, पृ० ५८४ । ३. (क) प्रकागित-आणंदजी कल्याण जी, चौवीसी वीगी संग्रह पृ० ४६७-५०७ (ब) जैन गुर्जर साहित्य रत्नो, नाग १ (सूरत से प्रकाशित), पृ० ३६० ।
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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