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________________ परिचय खंड १२२ के आधार पर रचित एक चरितकाव्य है । पाटण भण्डार में सुरक्षित इसकी एक प्रति में मापा का स्वरूप इस प्रकार है। "मेरी सज्जनी मुनि गुण गावु री । चन्द्रघोत चन्द्र मुणिन्द मेरा नामइ हुइ आणन्द । संसार जलनिधि जलह तारण, मुनिवर नाव समान ॥ मेरी० ॥२॥" होरानन्द : होरो संघवी, गृहस्थ कवि ; ( सं० १६६४ ६८ ) गुजराती कृतियों के अन्तःसाक्ष्य के आधार पर इनके पिता का नाम कान्ह १ और गुरु का नाम विजयसेनसूरि २ सिद्ध होता है। शेष जीवनवृत के बारे में अभी तक जानकारी उपलब्ध नहीं होती। हीरानन्द एक अच्छे कवि थे । ५२ अक्षरों में से प्रत्येक अक्षर पर एक-एक पद्य की रचना सहित ५७ पद्यों से सुसज्ज इनकी "अध्यात्म वावनी" ज्ञानाश्रयी कविता की प्रतिमापूर्ण हिन्दी काव्यकृति है । ३ इसकी रचना लाभपुर के भोजिग किशनदास शाह वेणिदास के पुत्र के पठनार्थ हुई थी। ४ इसका मुख्य विषय अध्यात्म है। इनकी भाषा प्रवाहपूर्ण व समर्थ है तथा कवित्व उच्च प्रकार के गुणों से युक्त है। परमात्मतत्व की महिमा में उद्गीत प्रारम्भिक पंक्तियाँ द्रष्टव्य है। __"ऊंकार सरुपुरुष ईह अलष अगोचर, अन्तरज्ञान विचारी पार पावई नाहि को नर ।" विपय और भाषा दोनों के गौरव का निर्वाह कवि ने बड़ी सुन्दरता के साथ किया है। दयासागर वा दामोदर मुनि : ( स० १६६५ - ६९) __ये अचलगच्छीय धर्ममूर्तिसूरि की परम्परा में उदयसमुद्रसूरि के शिष्य थे। ५ गुजराती की कृयितों में एक कृति “मदनकुमार रास" की प्रशस्ति में ..मदन शतक" का उल्लेख है जो इनकी एक १०१ दोहे में रचित हिन्दी रचना है। इस गन्थ का उल्लेख हिन्दी साहित्य. द्वितीय खण्ड में भी किया गया है । वस्तुतः यह एक प्रेमकथा है। १ वही, पृ० ६४० - २ वही ३ बावन अक्षर सार विविध वरनन करि भाप्या । चेतन जड संबंध समझि निज चितमई राप्ता ।। - अध्यात्म वावनी ४ जैन गूर्जर कविओ, भाग १, पृ० ४६६-६७ ५ वही भाग १, पृ० ४०४
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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