SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 118
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११६ परिचय खंड वादिचन्द्र : ( १६५१ - ५४ ) श्री मो० द० देसाई ने इनको भट्टारक ज्ञानभूपण का शिष्य बताया है। १ वास्तव में थे मूलसंघ के भट्ठारक ज्ञानभूपण के प्रगिष्य और प्रभाचन्द्र के शिष्य थे । इनकी गुरु परम्परा इस प्रकार स्वीकृति हैं- दिगम्बर मूलसंघ के विद्यानन्दि - मल्लिघूषण - लक्ष्मीचन्द्र - वीरचन्द्र - ज्ञानभूषण - प्रमाचन्द्र के शिप्य वादिचन्द्र । २ इनकी गद्दी गुजरात में कहीं पर थी। इनके जन्म तथा जीवनवृत्त का कहीं उल्लेख नहीं मिलता। वादिचन्द्र एक उत्तम कोटि के साहित्य सर्जक थे। 'पार्श्वगुराग', 'ज्ञानसूयोदय नाटक', 'पवनदूत' आदि संस्कृत ग्रंथों के साथ इन्होंने "यगोबर चरित्र" की भी रचा की जो अंकलेश्वर - रूच (गुजरात) के चितामणि प्राश्वर्वनाव के मन्दिर में, मं० १६५७ में रची गई। ३ वादिचन्द्र की प्राप्त रचनाओं का यहाँ संक्षिप्त परिचय दिया जाता है। "श्रीपाल आख्यान" ४ - इस आख्यान की एक प्रति वम्बई के ऐलन पन्नालाल सरस्वती भवन में सुरक्षित है। इसकी रचना सं० १६५१ में हुई थी। ५ इस आख्यान के सम्बन्ध में श्री नाथूराम प्रेमी ने लिखा है कि यह एक गीतिकाव्य है और इसकी भाषा गुजराती मिश्रित हिन्दी है । ५ इस कृति में एक अपूर्व आकर्षण है । नव रसों का बड़ा सुन्दर परिपाक हुआ है । भाषा अत्यन्त सरल एवं प्रवाहयुक्त है। दोहे और चौपाइयों का प्रयोग विशेष है। विभिन्न रागों में सुनियोजित यह काव्य बड़ा ही सरस एवं भक्तिपूर्ण भावों की स्रोतस्विनी है। १ जैन गूर्जर कविओ, भाग ३, खण्ड १, पृ० ८०३ २ नाथूराम प्रेमी कृत जैन साहित्य और इतिहास, पृ० ३८७, पादटिप्पणी ३ अंकलेश्वर सुनामे श्री चिन्तामणि मन्दिरे । सप्त पंच रसान्जां के वर्षे कारी सुशास्त्रकम् ॥ - यशोधर चरित्र की प्रशस्ति, ८१ वां पद्य प्रशस्ति संग्रह, प्रथम भाग, प्रस्ताना पृ० २४, पाद टिप्पणी ४ अ। ४ जैन गुर्जर कविओ, भाग ३, खण्ड १, पृ० ८०४ ५ सम्वत सोल एकावना से, कीधु एह सम्बन्धजी। भवीयण थीर मन करि निसुणयो, नित नित ए सम्बन्धजी ॥१०॥ -श्रीपाल आख्यान
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy