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________________ प्राचार्य भद्रबाहु स्वामी जिनशासन शिरोमणि श्रुतधर आचार्य भद्रबाहु उस युग के महान आस्थावान आचार्य हुए। श्रुतकेवली की परम्परा में आपका क्रम पाँचवाँ था। वे अन्तिम श्रुतकेवली थे। जैन शासन को वीर निर्वाण की द्वितीय शताब्दी के मध्य दुःकाल में भयंकर वात्याचक्र से जूझना पड़ा था। आपके नायकत्व में २४००० हजार मुनि एक साथ रहा करते थे। उज्जयिनी में जब भयंकर अकाल पड़ा तब उस दुष्काल के समय बारह हजार मुनि दक्षिण की ओर बढ़ गए। सम्राट चन्द्रगुप्त को भद्रबाहु आचार्य ने मुनि दीक्षा दी । तथा आपने अपना समाधि साधना स्थल श्रवणबेल गोला की चन्द्रगिरि पर्वत बनाया जहां पर आप शिष्यों सहित विराजे थे । आज भी आपकी चरण चिह्न गुफा में बनी हुई है।
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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