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________________ ५५२ ] दिगम्बर जैन साधु वम्बई ( सं० १९९२ ) व्यावंर में सरस्वती भवनों की स्थापना की गई । अनेक स्थानों पर औषधालय तथा पाठशालाएं भी स्थापित करायीं । धर्म विरुद्ध सामाजिक रूढियों के प्रति समाज को जागरूक कर समार्ग दिखाया । ऐसे अनगिनत समाजोद्धार के कार्य कर सामाजिक मर्यादाओं को स्वस्थ-रूप प्रदान किया। क्षुल्लक श्री मनोहरलालजी वर्णी "सहजानन्द" श्री १०५ क्षुल्लक मनोहरलालजी वर्णी का जन्म कार्तिक कृष्णा १० वि० सं० १९७२ को झांसी जिले के दुमदुमा ग्राम में हुआ है। इनके पिताजी का नाम श्री गुलावराय और माता का नाम तुलसाबाई है। जन्म का नाम मगनलालजी और जाति गोलालारे है । प्राईमरी स्कूल की शिक्षा के बाद संस्कृत शिक्षा का विशेष अभ्यास इन्होंने श्री गणेश जैन विद्यालय सागर में किया और वहां से न्यायतीर्थ परीक्षा पास की है। प्रकृति से भद्र देख वहां पर इनका नाम मनोहरलाल रखा गया था। विवाह होने के बाद गृहस्थी में ये बहुत ही कम . समय तक रह सके । पत्नी वियोग हो जाने से ये सांसारिक . . प्रपन्चों से विरक्त हो गये और वर्तमान में ग्यारहवीं प्रतिमा के व्रत पालते हुए जीवन संशोधन में लगे हुए हैं। इनके विद्यागुरु पूज्य गणेशप्रसादजी वर्णी महाराज ही हैं । वर्तमान में ये सहजानन्द महाराज तथा छोटे . वर्णी जी इन नामों से भी पुकारे जाते हैं। .... . N इन्होंने सहजानन्द ग्रन्थमाला नाम की एक संस्था स्थापित की है। इसमें इनको निर्मित पुस्तकों का प्रकाशन होता है । इन्होंने एक अध्यात्म गीत की भी रचना की है। इसका प्रारम्भ "मैं स्वतन्त्र निश्चल निष्काम" पद से होता है । आजकल प्रार्थना के रूप में इसका व्यापक प्रचार व प्रसार है । अध्यात्म शास्त्र समयसार के ये अच्छे ज्ञाता व वक्ता हैं।
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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