SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 484
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दिगम्बर जैन साधु ऐलक श्री जयभद्रजी महाराज १..ANTRA मराठा और राजपूतों का इतिहास गौरव गाथाओं का इतिहास है । युद्धवीरता की तरह धर्मवीरता की कथाएँ यहां की मिट्टी में रली-मिली हैं जिसे हर आगन्तुक को यहां के निवासी अनथक रूप से सुनाना नहीं भूलते । ऐसी ही एक गाथा औरंगाबाद जिले के गांव पुरी के साथ भी जुड़ गई। श्री धर्मचंद तेजाबाई बाकलीवाल दम्पत्ति के घर फाल्गुन कृ० १२ सन् १९३८ को एक पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम रामचंद रखा गया । बचपन से ही यह बहुत धार्मिक.. तथा भव भोगों से भीत रहता था जिससे आपके माता-पिता सदैव आशंकित रहते थे कि कहीं उनका यह पुत्र वैराग्य मार्ग पर न चल पड़े और उनकी यह आशंका एक दिन सच निकली । काललब्धि हो अथवा क्षेत्र का प्रभाव, गुरुदेव आ० श्री समन्तभद्रजी म० के चरणों का आश्रय पाकर गांव पुरी का साधारण सा रामचन्द ऐलक जयभद्र वनकर मोह वन्धन को काटने शिवपथ पर चल पड़ा । चैत्र शु० २ सन् १९५९ को ब्रह्मचर्य व्रत, श्रावण शु० ७ सन् १९६७ को सप्तम प्रतिमा बाहुबली क्षेत्र पर ग्रहण की । भाद्र कृष्णा ९ सन् १९७४ में श्री निर्मलसागरजी म. से क्षुल्लक दीक्षा औरंगाबाद के विशाल श्रावक समूह के मध्य ग्रहण की । मुनिश्री ने आपका नाम क्षु० वर्धमान सागर रखा । चार वर्ष तक धर्मसाधना करते हुए सन् १९७८ वैशाख पूर्णमासी को १०८ पू० महाबलजी महाराज से खंवटकोप में ऐलक दीक्षा ग्रहण की और आप जयभद्रसागर म० के नाम से लोक में प्रसिद्ध हुए। आचार्य श्री समन्तभद्रजी म०, पू० १०८ मुनि आर्यनंदीजी म०, पू० १०८ महाबलजी म० की प्रेरणा से स्थान २ पर भ्रमण कर धर्म प्रचार कर श्रावकों को सद्मार्ग दिखा रहे हैं ।
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy