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________________ दिगम्बर जैन साधु श्री १०८ श्रादिसागरजी महाराज [ ४२६ कार्तिक सुदी पंचमी वी० नि० सं० २४१८ सं० १६६२ में शेडबाल में श्री देवगौड़ाजी पाटील की धर्मपत्नी श्री सरस्वती बाई की कोख से जन्म लिया था। आपकी लौकिक शिक्षा B. A. फाइनल कन्नड़ में थी । आचार्य श्री शान्तिसागरजी महाराज से वीर सं० २४७१ में ब्रह्मचर्य व्रत फलटण में लिया । संघ में रहकर पठन पाठन करते रहते थे । वीर नि० सं० २४८० में १५-३-५४ को शेडबाल में ही मुनि वर्धमानसागरजी से मुनि दीक्षा ली तथा साधु पद की साधना करने लगे । आप चारों अनुयोगों के अच्छे प्रवक्ता थे । अनेकों ग्रन्थों का सम्पादन कार्य किया । साहित्य के क्षेत्र में आपका महत्वपूर्ण स्थान रहा है । आपके द्वारा लिखे ग्रन्थ त्रिकालवर्ती महापुरुष, आहारदान विधि, सूतक विधि, यह कौन है, श्रावक नित्य क्रिया कलाप, चौतीस स्थान दर्शन, नित्य प्रतिक्रमण विधि आदि ने समाज को महत्वपूर्ण दिशा बोध दिया था । आपकी सामाजिक सेवा भी महत्वपूर्ण रही । आपके माध्यम से दक्षिण भारत में जैन धर्म की काफी प्रभावना हुई तथा सर्वत्र विहार कर भ० महावीर के सिद्धान्तों को जन-जन तक पहुंचाया। धन्य है ऐसे ज्ञानी मुनि वृन्द जो आत्म कल्याण के साथ-साथ पर कल्याण करते हुए निरन्तर सही मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं ।
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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