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________________ ४१२ ] दिगम्बर जैन माधु प्राचार्य श्री देशभूषरणजी महाराज . PAN ए . . .. .. 4 . i . . 4 r आचार्य देशभूषणजी महाराज एक शान्त वीतरागी साधु हैं। निरन्तर ध्यान स्वाध्याय में रत रहते हैं । संस्कृत, अंग्रेजी, भाषा के अलावा कन्नड़ी और मराठी भाषा के भी महान् विद्वान हैं । भरतेश वैभव, रत्नाकरशतक, परमात्म प्रकाश, धर्मामृत, निर्वाण लक्ष्मीपति स्तुति, निरंजन स्तुति आदि कन्नड़ी भाषा के महान् ग्रन्थों का हिन्दी गुजरातीमराठी भाषा में अनुवाद किया है । गुरू शिष्य संवाद, चिन्मय चिन्तामणी आदि स्वतंत्र रचनायें तथा अहिंसा का दिव्य सन्देश आदि अनेक ग्रन्थ लिखकर भव्य जीवों का कल्याण किया है । कुछ वर्ष से चातुर्मास के समय जो आप प्रवचन करते हैं उनके पुस्तकाकार बन जाने से वे भी मननीय शास्त्र सम वन गए हैं । आपका शान्त स्वभाव, अमृतमय धर्मोपदेश वड़ा ही सुन्दर होता है। alaimaniamanna आपने वेलगांव जिले के कोथलपुर गांव में जन्म लिया है । आपके पिता का नाम श्री सत्यगोड़ा और माताजी का नाम श्रीमती अक्कावती था। वे दोनों ही धर्मपरायण थे। आपका जन्म संवत् १९६५ में हुआ था और जन्म का नाम वालगोड़ा था। आपको माता आपको तीन मास की अवस्था में ही छोड़कर स्वर्गस्थ हो गई और पिता के भी ७ वर्ष को अवस्था में ही स्वर्गस्थ हो जाने से आपकी नानी ने आपका पालन पोषण किया और संपत्ति की भी संभाल की। १६ वर्ष की अवस्था तक आपने कन्नड़ी और मराठी भाषा में अच्छी शिक्षा प्राप्त की परन्तु धर्म में रुचि न थी । आप सदैव कुसंगति में रहने लगे । देव शास्त्र गुरु जैन मन्दिर सभी से पराङ्गमुख थे । एक समय ऐसा आया कि वहां श्री १०८ आचार्य जयकीर्तिजी पहुंच गये। थोड़े दिन तो आप उनके पास ही न गये । जाते भी कैसे ? रुचि तो उधर थी ही नहीं परन्तु एक दिन उनके उपदेश सुनने का प्रसंग आ ही गया । वस उसी उपदेश ने आपके हृदय में धर्म का बीज डालने का काम किया फिर तो रोज जाने लगे। उधर आपके विवाह करने की नाना ने चर्चा की। उनके प्रवल अनुरोध और चारों तरफ से दवाव पड़ने पर भी विवाह के प्रस्ताव को स्वीकार न कर ठुकरा दिया और उक्त "
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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