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________________ ४०० ] दिगम्बर जैन साधु नायिका नंगमती माताजी आपका जन्म सन् १९५१ में इन्दौर में हुआ । आपके पिताजी का नाम श्री मारिणकचन्दजी कासलीवाल एवं माताजी का नाम माणिकबाई है। आपका पूर्व नाम सुदर्मावाई था। आपका पूरा परिवार धार्मिकता से ओतप्रोत रहा है। आपने १५ वर्ष की आयु में ही श्री १०८ ज्ञानभूपणजी महाराज से ब्रह्मचर्य व्रत धारण किया था । ७ वी प्रतिमा श्री १०८ आ० श्री विमलसागरजी से श्री शिखरजी में ली। आपने जीवकांड कर्मकान्ड आदि परीक्षा उत्तीर्ण की है। आपने आर्यिका दीक्षा सोनागिरिजी में सावन सुदी १५ तारीख ८-८-१९७६ को श्री चन्द्रप्रभु प्रांगण में श्री १०८ आ० श्री विमलसागरजी महाराज से ली। आप बहुत - सरल स्वभावो मृदुभापी एवं गुरुभक्त हैं। . . . . . आर्यिका स्याद्वादमती माताजी आपका जन्म १४ मई सन् १९५३ को इन्दौर (म० प्र०) में हुआ । आपके पिताजी का नाम श्री धन्नालालजी पाटनी एवं माताजी का नाम श्रीमती कमलादेवी है। आपके १ भाई एवं ७ वहिन हैं। आपका पूर्व नाम एरावती पाटनी था । आपने बी. ए. फाइनल की परीक्षा उत्तीण की है । १६ वर्ष की उम्र में मुनि श्री ज्ञानभूषणजी महाराज के उपदेश से धर्म की ओर मोड़ लेकर ब्रह्मचर्य व्रत अंगीकार किया तथा साथ ही धार्मिक ग्रंथों का अवलोकन करते हुए ज्ञानार्जन किया। आपने अपने जीवन काल में अध्ययन मनन चिन्तन के साथ ही श्रेष्ठ साध्वी जीवन व्यतीत करने का निश्चय कर लिया आप में वचपन से ही वैराग्य. की भावना थी। इस कारण से आपने राग-द्वेषादिक से युक्त सांसारिक सुखों को तिलांजलि देकर आत्म साक्षात्कार करने के लिये श्रावण सुदी १२ तारीख ५-८-७९ रविवार को श्री सोनागिरीजी सिद्धक्षेत्र पर आचार्य श्री विमलसागरजी से क्षुल्लिका दीक्षा ग्रहण की उस समय आपका नाम अनंगमती रखा गया । गोमटेश्वर महामस्तकाभिषेक में आपने आयिका दीक्षा लेकर स्याद्वादमती नाम सार्थक किया।
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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