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________________ आदर्श जीवन के धनी श्रीमान् पूनमचन्दजी सा० गंगवाल श्रीमान् समाजरत्न दानवीर श्रेष्ठि श्री पूनमचन्दजी गंगवाल पचार निवासी से जैन समाज का ऐसा कौनसा व्यक्ति है जो अपरिचित होगा आपका जन्म फाल्गुन शुक्ला १५ वि० सं० १९८५ में राजस्थान प्रान्त के अन्तर्गत सीकर जिले के सुप्रसिद्ध पचार नगर में जैन धर्म परायण श्रेष्ठिवर श्री नेमीचन्दजी सा० गंगवाल की धर्मानुरागिनी धर्मपत्नी लादी बाई की कुक्षि से ऐसे परिवार में हुवा है, जो दान और त्याग में आदर्शमयी रहे हैं। आपके पूज्य पितामह धर्मवत्सल देव शास्त्र गुरु उपासक श्रीमान् स्व० श्री गौरीलालजी साहब ने न्यायोपाजित द्रव्य कमाते हुये धर्म ध्यान में समय व्यतीत किया और अन्त में परमपूज्य घोर तपस्वी आगम प्रवीण प्राचार्य कल्प श्री १०८ चन्द्रसागरजी महाराज से मुनि दीक्षा लेकर प्रात्म कल्याण किया तथा जयपुर में समाधिमरण कर उत्तम गति को प्राप्त किया, जिनकी पावन स्मृति में श्रीमान् पूनमचन्दजी सा० ने मोहन वाड़ी जयपुर में बहुत सुन्दर छतरी बनवाई है । इसीप्रकार आपके पूज्य पिता श्री नेमीचन्दजी सा० का भी पूर्ण धार्मिक जीवन रहा, वे भी पूर्ण धर्माचरण में समय व्यतीत करते थे-जिसप्रकार न्यायोपार्जित द्रव्य कमाने का लक्ष्य था उसीप्रकार दान और त्याग में भी आपकी पूर्ण अभिरुचि थी-आपने अपने सानिध्य में अनेक धार्मिक और लौकिक संस्थाओं की स्थापना की तथा अपने पिता श्री के पद चिह्नों पर चलते हुये गृह विरत हो क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण कर आत्म कल्याण का मार्ग अपनाया। आपकी पुण्य स्मृति में भी श्रीमान् श्रेष्ठिवर पूनमचन्दजी साहव ने कुचामन सिटी पुरानी नसियां में एक भव्य छतरी का निर्माण कराया है । श्रीमान् सेठ पूनमचन्दजी ने कुचर्चामन में शिक्षा प्राप्त की-आपने अपना व्यवसाय व्यापारिक क्षेत्र को चुना, १६ वर्ष की युवावस्था में प्रासाढ़ शुक्ला ६ सं० २००१ में कुचामन निवासी श्रीमान्
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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