SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 407
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दिगम्बर जैन साधु [ ३५६ क्षुल्लक श्री नमिसागरजी महाराज श्री १०५ क्षुल्लक नमिसागरजी का पूर्व नाम सुरगोड़ाजी था। आपका जन्म दिनांक १३-२-४१ को मदले ( कोल्हापुर ) में हुआ । आपके पिता श्री यवगोड़ाजी थे, जो नौकरी करते थे। आपकी माता का नाम लक्ष्मीबाई था । आप चतुर्थ जाति के भूषण हैं । आपकी लौकिक शिक्षा कक्षा ७ वीं तक हुई । धार्मिक शिक्षा वालबोध जैनधर्म चौथा भाग तक हुई। आप वाल ब्रह्मचारी हैं। आपके परिवार में पांच भाई व दो बहिने हैं । ___ साधु-समागम व उनके धर्मोपदेश के श्रवण-मनन से आपके मानस में वैराग्य की भावना बढ़ी। आपने दो फरवरी उन्नीस सौ उनहत्तर को औरंगाबाद में श्री १०८ आचार्य महावीरकीर्तिजी महाराज से क्षुल्लक दीक्षा ले लो। आपने एक से अधिक स्थानों पर चातुर्मास किये। धर्म और समाज की सेवा की। क्षल्लक श्री सम्भवसागरजी महाराज श्री १०५ क्षुल्लक सम्भवसागरजो का गृहस्थावस्था का नाम मांगीलाल जैन था। आपका जन्म पचहत्तर वर्ष पहले मण्डलेश्वर में हुआ। आपके पिता श्री वीरासा जैन थे, जो नौकरी करते थे। आपकी माताजी का नाम कस्तूरीबाई था। आप पारवाल जाति के भूषण हैं । आपकी लौकिक एवं धार्मिक शिक्षा साधारण हुई । आप वाल ब्रह्मचारी हैं । अकेलेपन के कारण आप धर्म की दिशा में सहज ही बढ़ सके। आपने विक्रम संवत २००८ में इन्दौर में श्री १०८ आचार्य महावीरकीतिजी महाराज से क्षुल्लक दीक्षा ले लो। आपको भजन स्तुतियों पदों से बड़ा प्रेम है । आपने फुलेरा, भवानीगंज, औरंगाबाद गिरनारजी, इन्दौर, गजपन्थाजी, उज्जैन आदि नगरों में चातुर्मास किये । आप रविवार को कभी भी नमक नहीं लेते हैं।
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy