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________________ दिगम्बर जैन साधु [ ३५७ वनना संभव हुआ, इसीलिए तो इनका नाम संभवसागर है । प्रस्तुत मुनि श्री का संक्षिप्त जीवन परिचय सवको ज्ञान, ध्यान, संयम, तप, त्याग और वैराग्य की प्रेरणा दे रहा है । मुनिश्री नमिसागरजी महाराज -":. -:.: . .. . म - आपका जन्म मजले ग्राम कोल्हापुर ( महाराष्ट्र) में हुवा था। आपके पिता का नाम यवगोडाजी तथा माताजी का नाम श्री लक्ष्मीवाई था। आपका पूर्व नाम सुरगोड़ा यवगोड़ा पाटिल था । आपने मराठी में ७ वीं तक शिक्षा प्राप्त की थी। २८ वर्ष की उम्र में आचार्य महावीरकीतिजी से क्षल्लक दीक्षा औरंगाबाद में ली तथा १०-१०-१९७० में मांगीतुंगी सिद्धक्षेत्र पर आपने आचार्य श्री से मुनि दीक्षा ली। ___दीक्षा लेने के पूर्व एवं पश्चात् निरन्तर चारों अनुयोगों का स्वाध्याय करना, चिन्तन करना ही आपका SHER : . लक्ष्य रहा। अब तक आपने ५१ बार समयसार का स्वाध्याय किया है । आपने भगवती आराधना नामक ग्रन्थ को हस्त लिखित किया । आपके सदुपदेश से तमदलगे नामक स्थान पर मन्दिर का निर्माण कार्य चल रहा है । सं० १९८३ में आपका चातुर्मास सामंती में हुआ। TESH '. . . JAMI - 3 . धन्य है आपकी तपस्या, त्याग जो निरन्तर ज्ञान ध्यान में लीन रहते हैं।
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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