SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 403
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दिगम्बर जैन साधु [ ३५५ के समक्ष सैकड़ों नर-नारियों के बीच क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण कर ली और उसके एक वर्ष बाद जब संघ का चातुर्मास मांगीतुगी में हुआ तो आपने दिनांक १०-१०-१९७० शनिवार के दिन मुनि दीक्षा ग्रहण करली और आत्म कल्याण में प्रवृत्त हुये । आप परम शांत ज्ञान ध्यान तपोरक्त महान तपस्वी हैं । आपके चरणों में शत-शत प्रणाम । मुनिश्री सम्भवसागरजी महाराज -- - ommon. KLA itra . N Shreeminar .. पूज्य महाराज श्री का जन्म ३ मई सन् १९४१ को शनिवार के दिन दक्षिण भारत के मैसूर प्रांत में मंगलोर जिले के वैन्दूर गांव में क्षत्रिय कुल में हुआ । आपके पिता का नाम स्व. श्री वालैय्या होवलीदार एवं माता का नाम श्रीमती पार्वती देवी है। जिनके पूर्वज अपनी क्षत्रियोचित वीरता के लिए प्रसिद्ध रहे हैं । होवलीदार की उपाधि उन्हें टीपू सुरतान द्वारा प्राप्त हुई थी, जो अंग्रेजों के आक्रमण के समय [ पूर्वजों को ] इन क्षत्रियों के पराक्रम से अत्यन्त प्रभावित हुआ था । आपके अन्य पांच भ्राता एवं तीन बहिनें हैं। सभी व्यापार एवं कृषि कार्य में संलग्न हैं। M 1 14 वाल्यावस्था में ही आपने अपनी मातृभाषा कन्नड़ एवं हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत आदि कई भाषाओं का प्रारंभिक ज्ञान प्राप्त कर लिया । धीरे धीरे आप युवावस्था में प्रवेश करने लगे, किन्तु आपका मन इस संसार के क्रियाकलापों के प्रति उदासीन रहने लगा और शीघ्र ही आपका चिन्तनशील मन इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि संसार में सब जीव दु:खी रहते हैं तथा ये सभी सांसारिक सुख क्षणभंगुर हैं । गृह में रहते हुए निराकुलता की प्राप्ति संभव नहीं है । इन्हीं सब विचारों के चिंतन करने से आपका मन संसार से उचट गया। बस फिर क्या था वैराग्य की भावना लिए हए पाप २२
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy