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________________ दिगम्बर जैन साधु [३३३ प्रार्थना की। परिवार की अनुमति लेकर आचार्य श्री ने दीक्षा देकर आपको अनन्तमती नाम दिया। केशलुन्चन की क्रिया देखते हुए तो लोग अतीव विरक्ति का अनुभव करते थे। शरीर से आत्मा की दिशा में बढ़ते देख कर सभी सन्तुष्ट दिखते थे। आहार सम्बन्धी कठोर नियमों के कारण अनेकों वार अन्तराय आया और दस पन्द्रह दिन तक पाया पर आपके सुमुख की सौम्यता शान्ति सुषमा नहीं गयी । आचार्य श्री के साथ सम्मेदशिखर पर पहुंचने पर आपने प्रायिका दीक्षा देने की प्रार्थना की तो उपयुक्त समझकर आचार्य श्री ने दीक्षा भी दे दी । आठ वर्ष तक गुरू चरणों में रहने के बाद-गिरनार क्षेत्र के दर्शन की लालसा लिये आप क्षुल्लिका विजयश्री के साथ चली, एक से अधिक उपसर्ग आये, रोगों ने घेरा, शरीर ने साथ छोड़ना चाहा पर आपने चिन्ता नहीं की। गिरनार पहुंचकर आपने चातुर्मास का संकल्प पूरा किया । क्षुल्लिकाश्री जिनमतीजी % - ad । SaPRI - % 3D RAAwament ETARIAND % 32 Purooseume maramanya Padm . माताजी का जन्म सिनोदिया ग्राम, जि० जयपुर, राजस्थान में मंगसर बदी पंचमी सं० २०७६ में हुआ। इनके पिता का नाम श्रीगोपीलालजी सोगानी व माता का नाम किस्तूर बाई था। इनका जन्म नाम छिगनोबाई था। इनसे छोटे चार भाई क्रमशः मोहनलालजी, भागचन्दजी, मदनलालजी, कैलाशचन्दजी तथा तीन ____ बहिनें गटूबाई, सन्तोषवाई एवं सुगनबाई हैं । आपकी शादी १३ ( तेरह ) वर्ष की अवस्था में श्रीमान् रिखबचन्दजी पाटनी कांकरा निवासी के सुपुत्र श्री मांगीलालजी के साथ हुई। इनके क्रमशः दो पुत्रियाँ बिमलाबाई व ताराबाई हुई। शादी के ६ साल बाद ही इनके पति श्री मांगीलालजी का स्वर्गवास हो गया। अपनी दोनों पुत्रियों की शादी करने के बाद संसारी कार्यों से इनका मन उचट गया व भगवान की भक्ति की ओर ध्यान प्राकर्षित हो गया।
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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