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________________ [ ३३१ दिगम्बर जैन साधु प्रायिका दयामतीजी कौन जानता था कि बालिका फूलीबाई एक दिन इस संसार के समस्त सुखों और वैभव की चकाचौंध कर देने वाली चमक दमक को एक ही झटके में तिलान्जलि दे संघ में शामिल हो जाएगी। . आपका वचपन का नाम जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है फूलीबाई था। आपके पिताजी का नाम श्री भागचन्द्र एवं माताजी का नाम मानकवाई था । आपका जन्म छाणी (उदयपुर) राजस्थान में हुआ । आप सुविख्यात प्राचार्य शान्तिसागरजी को सहोदरा बहिन हैं। बचपन से ही आपके हृदय पटल पर वैराग्य भावना अंकुरित हो वद्धन एवं संरक्षण पाती रही । निरन्तर संगति व उपदेश श्रवण करते रहने से एक दिन वैराग्य भावना जागृत हुई और हुआ यह कि आप सांसारिक आकर्षणों से स्वयं को मुक्त समझकर उससे परे हो गई। नारी सहज में ही ममत्व भरी होती है और फिर वह नारी जो मां बन चुकी हो उसके ममत्व का क्या कहना किन्तु धन्य है ऐसी नारी जिसको पुत्र, पति एवं भ्रातृ प्रेम के बन्धनों ने भी न बांध पाया हो। वि० संवत २०२० में खुरई नामक स्थान में आचार्य श्री धर्मसागरजी से प्रापने क्षुल्लक दीक्षा ली तथा प्रायिका दीक्षा संवत् २०२३ में आचार्य देशभूषणजी महाराज से दिल्ली में लो। आप डूगरपुर में श्री १०८ प्राचार्य विमलसागर महाराज के संघ में शामिल हुई। णमोकारादि मंत्र का आपको विशेष ज्ञान है। धर्म प्रेम की असी सद्भावना आपके हृदयस्थल में है, वैसी भावना नारी जगत में यत्र तत्र सौभाग्य से ही मिलती है । महिला समाज को आप पर गर्व है। ___ दुर्ग, दिल्ली, जयपुर, उदयपुर और सुजानगढ़ नामक स्थानों में अपने चातुर्मास किया । दही, तेल और रस आपके लिए त्याज्य हैं । आपके उपदेशों को सुनकर श्रोता स्वतः मंत्र मुग्ध से रह जाते हैं ।
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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