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________________ immSKEntra ३१४ ] दिगम्बर जैन साधु मुनिश्री सुबलसागरजी महाराज आपका जन्म मैसूर प्रांत जिला बेलगाम, तहसील अथणी, नंदगांव देहात में पाटिल (क्षत्रिय ) वंश में शिवगौडा नाम के सम्यक्दृष्टि, सरल स्वभावी श्रावक की धर्मपत्नी, अनेक गुण संपन्न शीलवती श्री गन्धारी माता की कुक्षी से. दिनांक ४-१-१९१६ में हुआ। आपका नाम परगौड़ा रखा गया । आपकी शिक्षा कक्षा ४ तक रही । माता-पिता के धर्म संस्कारों के साथसाथ आप देव-दर्शन, शास्त्र-श्रवण प्रादि धार्मिक क्रियाओं का पालन करने लगे । अठारह वर्ष की आयु में आपकी शादी धर्मपरायणा सुश्री चंपावती बाई के साथ हुई । आपके चार पुत्रियाँ । एवं एक पुत्र होते हुए भी गृहस्थाश्रम से उदासीन, जैसे. जल से भिन्न कमल की तरह, आप धार्मिक कार्यों में बढ़ते रहे। संसार से विरक्ति के कारण नसलापुर गांव में चातुर्मास के समय श्री १०८ वीरसागरजी महाराज से १०-८-१९५६ शुक्रवार को क्षुल्लक दीक्षा ले ली । चन्द्रसागर नाम रखा गया। कुछ वर्ष यत्र-तत्र भ्रमण एवं चातुर्मास करने के बाद श्री देशभूषणजी महाराज से सन १९५९ फाल्गुन मास में ऐलक दीक्षा धारण की । अनन्तर सन् १९६१ में मांगूर गांव में प्राचार्यरत्न देशभूषणजी महाराज ने श्री १००८ ऋषभनाथ तीर्थकर पंचकल्याणक किया तथा वहीं पर आचार्य रत्न महाराजजी के कर कमलों से जेठ शुक्ला दशमी सन् १९६१ को श्री चन्द्रसागर ऐलक को मुनि दीक्षा दी । उस समय आपका श्री १०८ सुबलसागर नाम रखा गया। मुनि दीक्षा के २०-२५ दिन बाद असाता कर्म के उदय से आप अधिक बीमार हो गये । शरीर : बहुत क्षीण हो गया । परन्तु आयु कर्म अवशेष रहने पर धीरे-धीरे आपका स्वास्थ्य ठीक हो गया। अस्वस्थ रहने के कारण गुरु संघ को छोड़कर दक्षिण में यत्र-तत्र भ्रमण करते रहे । इसी प्रकार भ्रमण करते हुए आपके संघ का पिछले वर्ष ग्राम डोडवाल जिला बेलगाम में चातुर्मास हुआ । वहाँ पर धर्मोपदेश से वहां के समाज ने ३।। लाख रुपयों की लागत से "अनाथालय आश्रम" की स्थापना की, जिसका कार्य अभी शुरू है । ___ धर्मामृत व कल्याणकारी उपदेश जिनके मुखारविन्द से झरते हों, ऐसे श्री १०८ सुबलसागरजी महाराज कोटिशः दीर्घायु हों।
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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