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________________ दिगम्बर जैन साधु मुनि श्री विनयसागरजी [ ३०१ आपका जन्म बांसवाड़ा जिले के पास घाटोल में शक्तिचन्द्रजी कोठारी के यहां हुआ था । पिता के उत्तम संस्कारों से उनमें शुरू से ही धार्मिक संस्कार पड़े आप मुनियों की भक्ति में लीन हो गये । मुनिवरों के दर्शनार्थ मीलों तक पैदल ही चले जाया करते थे । एक बार आचार्य श्री शान्तिसागरजी के केशलोंच को देख कर वह बड़े प्रभावित हुए और संसार को असार जान कर उन्होंने उसी समय कुछ व्रत लिये। फिर घर रह कर ही धर्मसाधना करने लगे । पूज्य श्री १०८ सुपार्श्वसागरजी के साथ उन्होंने सम्मेदशिखरजी की यात्रा की और वहीं पर सं० २०२६ में श्री सुपार्श्वसागरजी से मुनि दीक्षा ले ली। मुनि श्री विजयसागरंजो आपका जन्म सं० १९६७ को देवपुरा में हुआ था । माता का नाम चुन्नीबाई और पिताजी का नाम श्री टेकचन्द्रजी चित्तौड़ा था आपका बचपन का नाम अम्बालाल था । श्रापका विवाह छोटी आयु में ही हो गया था । वर्तमान समय में ४ पुत्र व १ पुत्री है, जो धर्म ध्यान पूर्वक गृहस्थ जीवन यापन कर रहे हैं । श्रावण सुदी तेरस सं० २०२९ को आपने घर वार छोड़ दिया और सिद्धक्षेत्र श्री सम्मेदशिखरजी में पूज्य मासोपवासी मुनिवर श्री सुपार्श्वसागरजी से आसोज सुदी दसमी सं० २०२९ को मुनि दीक्षा ली। आपका दीक्षा नाम श्री विजयसागरजी रखा गया ।
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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