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________________ २६४ ] दिगम्बर जैन साधु नवदीक्षित मुनि अमितसागरजी आपका जन्म दुगाह कलां (खुरई ) म०प्र० में श्रेष्ठि श्री गुलाबचन्दजी के घर पर दिनांक २६-६-६३ ई० संवत् २०२० को हुआ था । आपके ४ भाई २ वहने हैं, आपने ११ बीं कक्षा पास की, प्रारम्भ से आपकी प्रवृत्ति धार्मिक कार्यों में अधिक समय लगाने की थी, केवल १८ वर्ष की अल्प आयु में ही आपने श्री पुष्पदन्तजी महाराज से १२-२-८१ को ७० व्रत ग्रहण कर लिये, जिन्हें आगे ही आगे बढ़ने की एक ही लगन हो, उन्हें कौन रोक सकता है, विद्याध्ययन करते रहे, आप ५-१२-८२ को प्राचार्य महाराज के चरण सान्निध्य में आये,.एवं भीमपुर में आचार्य श्री से २ प्रतिमा के व्रत ग्रहण किये । २१ वर्ष की अल्पायु में आपके भाव सर्वोत्तम उत्कृष्ट संयमी, महावती मुनि बनने के हुए हैं वे न केवल प्रसंशनीय हैं, बल्कि स्तुत्य हैं जितना गुणानुवाद किया जाय कम है, आपने नन्हें नन्हें बालकों को जो प्रारम्भिक धार्मिक शिक्षण देकर इतने कम समय में संस्कार डाले हैं वे पौधे निश्चित रूप से अक्षुण्ण वट वृक्ष बनेंगे, आपका मृदुल स्वभाव, गुरु भक्ति, सच्ची लगन निश्चित रूप से देश समाज एवं धर्मानुरागी बन्धुओं को सन्मार्ग की ओर ले जाने में अत्यन्त सहायक होगी इसमें कोई सन्देह नहीं । धन्य है आपके माता पिता को जिन्होंने आपसा पुत्र रत्न उत्पन्न कर सम्पूर्ण कुल को गौरवान्वित कर दिया। ऐसे युवा मुनीश्वर को शत शत वन्दन । नवदीक्षित मुनि समकितसागरजी आपका जन्म सिरगन (ललितपुर) में का० शु० १० संवत् १९८८ में गोलारे ( जैन ) परिवार में श्रेष्ठि श्री परमानन्दजी की धर्म पत्नी रामकुवरवाई की कुक्षि से हुआ। आपने सिरगन एवं अन्य स्थानों पर धार्मिक शिक्षण संस्थाओं में विद्याध्ययन करके शास्त्री परीक्षा पास की । ५ वर्ष तक राजस्थान के धार्मिक विद्यालयों में शिक्षक पद पर कार्य किया, २५ वर्ष किराना का व्यापार किया, आ० देशभूषण महाराज से फलटण में ३-६-७७ को दूसरी प्रतिमा के व्रत लिये, श्रेयांससागरजी महाराज से तीसरी प्रतिमा के व्रत लिये, दिनांक ३-३-८२ को आचार्य श्री धर्मसागरजी महाराज से ब्रह्मचर्यवत एवं सातवीं प्रतिमा के पारसोला में व्रत लेकर घर चले गये, घर से विरक्ति होने लग गई थी और यदा कदा संघ में शामिल हो जाते थे। अजमेर आकर परम दयालु आचार्य श्री के चरणों में मुनि दीक्षा का श्री फल चढ़ाया, प्रार्थना स्वीकृत हो गई, सम्पूर्ण समाज जानकर हर्ष विभोर हो गया, और दिनांक ४-१०-८४ को आपने दि० जैन मुनि दीक्षा ली आपका कुल परिवार, माता पिता धन्य हो गये, धन्य है आपकी इस जैनेश्वरी दीक्षा को जो आप मोक्षमार्ग की ओर अग्रसर हो रहे हैं ।
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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