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________________ पृष्ठ सं० । १३२ १४१ १४३ १४६ '१६८ [ १६ ] ... पृष्ठ सं० मुनि श्रुतसागरजी आर्यिका वुद्धमतीजी ........... १८८ , प्रादिमतीजी ... ... . १८८ मुनि अजितकीर्तिजी अरहमतीजी १८६ " जयसागरजी आचार्य कल्प ध्रुतसागरजी १३३ चन्द्रमतीजी १६० क्षु० सिद्धसागरजी , राजुलमतीजी १९२ , सुमतिसागरजी १४१ नेमीमतीजी १९४ आर्यिका इन्दुमतीजी भद्रमतीजी १६५ , बीरमतीजी दयामतीजी , विमलमतीजी १४४ कनकमतीजी १६६ आ० कुन्थुमतीजी १४६ जिनमतीजी आ० सुमतिमतीजी सम्भवमतीजी आ० पार्श्वमतीजी विद्यामतीजी १६८ आ. सिद्धमतीजी १४८ सन्मतीमाताजी प्रा. ज्ञानमतीजी कल्याणमतीजी प्रा० सुपार्श्वमतीजी श्रेयांसमतीजी २०१ मा० वासुमतीजी श्रेष्ठमतीजी प्रा० शान्तिमतीजी १५७ , सुशीलमतीजी २०३ श्री शिवसागराचार्य स्तुतिः , विनयमतीजी २०४ प्रा० शिवसागरजी द्वारा दीक्षित शिष्य १५६ क्षु० सुव्रतमतीजी मुनि ज्ञानसागरजी प्राचार्य वन्दना २०६ " वृषभसागरजी प्राचार्य श्री धर्मसागरजी द्वारा दीक्षित " अजितसागरजी १७१ साधु वृन्द २०७ " सुपावसागरजी १७४ मुनि दयासागरजी २०६ ,, सुबुद्धिसागरजी १७८ " पुष्पदन्तसागरजी २१० भन्यसागरजी , निर्मलसागरजी ,, श्रेयांससागरजी , संयमसागरजी २१२ क्षु० योगीन्द्रसागरजी १८४ , अभिनन्दनसागरजी २१३ आर्यिका विशुद्धमतीजी ,, शीतलसागरजी २१४ १६६ २०० ~ ५ १५२ १५६ २०२ २०४ . १८० २११ १९१
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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