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________________ ६४] दिगम्बर जैन साधु शीलता, निपुणता एवं आत्म श्रद्धा से आपकी माता को दिगम्बर जैन आम्नाय के महत्त्व को बताया और अन्त में आपकी माता के हृदय में दिगम्बर जैन धर्म के प्रति अगाध श्रद्धा का समावेश किया। फलतः आपको माताजी श्वेताम्बर आम्नाय के बजाय दिगम्वरत्व के प्रति अटूट श्रद्धा रखने लगीं। कुछ समय पश्चात् आपके पिताश्रीने भी अपनी तीक्ष्ण विवेक शीलता के द्वारा दिगम्वरत्व के महत्व को आंका और दिगम्बर जैन धर्म के प्रति आस्था रखते हुये आचरण करने लगे। यह नीति है कि "मातृ पितृ कृताभ्यासो गुणताम् इति बालकः" अर्थात् माता पिता ही वालकों को गुणवान बनाते हैं, क्योंकि वालक मां के पेट से पण्डित होकर नहीं निकलता । ठीक यही नीति आपके ऊपर भी चरितार्थ हुई। एक वार आपके पिता व्यापार के लिये कलकत्ते आये । आप भी अपने पिता के साथ कलकत्ते आये तथा कलकत्त में चावल पट्टी दि. जैन पार्श्वनाथ वड़ा मन्दिर के समीप किराए पर रहने लगे। यहां जैन भाइयों से आपका अच्छा सम्पर्क हुआ। आपके पिता ने आपको नया मन्दिर चितपुर रोड की जैनशाला में पठनार्थ भरती करा दिया । आपने श्री पं० मक्खनलालजी तथा पं० श्री झम्मनलालजी से शिक्षा प्राप्त की । आपके धार्मिक संस्कार दृढ़ होने लगे। इस प्रकार आपने अपनी प्रारम्भिक लौकिक शिक्षा धार्मिक शिक्षा के साथ प्राप्त की। आपकी माता विशेष धर्म परायण व सद्गृहस्थिन के साथ ही अत्यन्त दयालु व योग्य थीं। इसका पूर्णतः प्रभाव आप पर पड़ा। आपके पिताजी भी एक उच्च घराने के आदर्श व्यवसायी होने के साथ ही जिनधर्म के कट्टर अनुयायी व श्रद्धालु थे । व्यापारी वर्ग में आपकी अच्छी प्रतिष्ठा थी। __जव आपकी उम्र लगभग १७ वर्ष की थी तो पिताश्री ने आपका विवाह बीकानेर निवासो व कलकत्ता प्रवासी सेठ जुगलकिशोरजी की शोल रूपा, सुयोग्य सुपुत्री श्रीमती वसंतावाई के साथ सम्पन्न करा दिया। लेकिन आपका गृहस्थाश्रम बालापन से ही बहुत वैराग्य युक्त व्यतीत हुआ। आपकी बड़ी बहिन श्री सोनाबाईजी भी आजकल श्रावकों के नैष्ठिक व्रतोंका पालन करती हुई शुद्ध ब्रह्मचर्य पूर्ण जीवनयापन कर रही हैं। .. . ..... आपके सुयोग्य, कर्तव्यशीलं तीन पुत्र श्री माणिकचन्द्रजी श्री हीरालालजी एवं श्री पदमचन्द्रजी हैं, जो पैतृक उद्योग के अलावा प्रेस का भी सञ्चालन करते हैं । आपकी सुयोग्यशीलरूपा तीन पुत्रियाँ भी हैं । बड़ी पुत्री श्री अमराववाई हैं। इनका विवाह पुरलियामें श्री भंवरलालजी के साथ एवं मझली पुत्री श्रीमती ममौलवाई का विवाह कलकत्ता निवासी सेठ श्री उदयचन्द्रजी धारीवाल के यहां सम्पन्न हो चुका है । आपकी छोटी पुत्री सुश्री सुशीला वर्तमान में आर्यिका श्रुतमतीजी हैं तथा गहरी धार्मिक आस्था के साथ त्याग मार्ग की ओर उनकी रुचि है।
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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