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________________ मुनि श्री नेमसागरजी महाराज MINS 4 . . पूज्य श्री का जन्म, कुडची, ग्राम (बेलगांव-दक्षिण ) में हुआ था । आपके पिता का नाम अराणा और माता का नाम शिवदेवी था। आप तीन भाई थे, एक भाई की पैदा होते ही मृत्यु हो गई थी, दूसरे भाई को मृत्यु सात आठ वर्ष की अवस्था में हुई थी। आप ज्येष्ठ थे । माता की मृत्यु के समय आपकी अवस्था लगभग १२ वर्ष की थी। माता सरल परिणामी, परोपकाररत साधु स्वभाव वाली थी। दीन जनों पर माता का बड़ा प्रेम था। आपके पिता बहुत बलवान थे। पांच छै गुन्डी पानी का हंडा । पीठ पर रखकर लाते थे। आपका बचपन वास्तव में आश्चर्यप्रद है । आप ग्राम के मुसलमानों के बड़े स्नेहपात्र थे। मुस्लिम दरगाह में जाकर पैर पड़ा करते थे और सोलह वर्ष की उम्र तक वहां जाकर अगरवत्ती जलाना और शक्कर चढ़ाया करते थे । जब आपको धर्मबोध हुआ तो आपने दरगाह वगैरह क्षेत्र में जाना बन्द कर दिया, इससे मुसलमान काफी नाराज हुए और आपको मारने की सोचने लगे। ऐसी स्थिति में आप कुडची ग्राम से चार मील दूर ऐनापुर गांव में चले गये । यहां के पाटिल से आपका काफी सौहार्द था । ऐनापुर गांव में आप रामू (कुन्थु सागरजी ) तथा एक और व्यक्ति मिलकर ठेके पर जमीन लेकर खेती करने लगे। आपकी सांसारिक कार्यों से अरुचि थी । आप इनको दुःखमय मानते थे और आपकी इनसे छुटने के उपाय-मुनि मार्ग की तरफ रुचि थी और बाल्यावस्था में ही मुनि बनना चाहते थे। धीरे-धीरे इनकी इच्छा बलवती हो गई । आप ज्योतिषियों से पूछा करते थे कि मैं मुनि कब बनेगा। मेरी यह इच्छा पूरी होगी या नहीं? आचार्य श्री शान्तिसागरजी महाराज से आपने गोकाक नगर में क्षुल्लक दीक्षा और समडोली में मुनिदीक्षा ली थी।
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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