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________________ ८२ ] दिगम्बर जैन साधु सिंधु आदि नीतिपूर्ण तत्त्वभित ४० ग्रन्थरत्नों की उत्पत्ति आपके ही अगाधज्ञानरूपी खानसे हुई थी। आपके दुर्लभ संस्कृतभापा-पांडित्य पर बड़े २ विद्वान पंडित भी मुग्ध हो जाते थे ! आपकी ग्रन्थनिर्माणशैली अपूर्व थी। आपकी भापण-प्रतिभा शान्त व गम्भीर मुद्राके सामने बड़े २ राजाओं के मस्तक झुकते थे गुजरात प्रांत के प्रायः सभी संस्थानाधिपति आपके आज्ञाकारी शिष्य बने हुए हैं। अवतक हजारों की संख्या में जैनेतर आपके सदुपदेश से प्रभावित होकर मकारत्रय ( मद्य, मांस, मधु ) के नियमी व संयमी बन चुके हैं। ___गुजरात व वागड़ प्रांत में आपके द्वारा जो धर्मप्रभावना हुई है व हो रही है वह इतिहास के पृष्ठों पर सुवर्णवर्णों में चिरकाल तक अंकित रहेगी। गुजरात में कई संस्थानिकोंने अपने राज्यमें इन तपोधन के जन्मदिन के स्मरणार्थ सार्वजनिक छुट्टी व सार्वत्रिक अहिंसादिवस मनाने के फर्मान निकाले हैं । सुदासना स्टेट के प्रजावत्सल नरेश तो इतने भक्त बन गये थे कि महाराज का जहां. २ विहार होता था वहां प्रायः उनको उपस्थिति रहती थी। कभी अनिवार्य राज्यकार्य से परवश होकर महाराज से विदा लेने का प्रसंग आने पर माता को बिछड़ते हुए पुत्र के समान नरेश की आंखों में से प्रांसू बहते थे धन्य है ऐसी गुरुभक्ति! युवराज कुमार साहेव रणजीतसिंहजी पूज्यवर्य के परमभक्त थे। वे कई समय महाराज की सेवा में उपस्थित होकर आत्महित के तत्त्वों को पूछते हुए महाराज की सेवा में हो दीर्घ समय व्यतीत करते थे । तारंगाजी से महाराज का विहार होने का समाचार जानकर कुमार साहेब से रहा नहीं गया, वे पूज्यश्री के चरणों में उपस्थित होकर ( अश्रुपात करते हुए) महाराज से निवेदन करते हैं कि स्वामिन् ! पुनः कब दर्शन मिलेगा? कितनी अद्भुत भक्ति थी यह ! पूज्यश्री ने आज गुजरात में जो धर्मजागृति की है वह "न भूतो न भविष्यति" है। गुजरात में जैन क्या, जैनेतर क्या, हिन्दु क्या, मुसलमान क्या, उनके चरणों के भक्त थे । अलुवा, माणिकपुर, पेथापुर, डूंगरपुर, बांसवाडा, खांदु आदि अनेक राज्यों के अधिपति आपके सद्गुणों से मुग्ध थे। पिछले दिनों वड़ोदा राज्य में आपका अपूर्व स्वागत हुआ। राज्य के न्यायमन्दिर में स्टेट के प्रधान सर कृष्णमाचारी की उपस्थिति में आचार्यश्री का सार्वजनिक तत्वोपदेश हुआ था। ___ गुजरात से विहार कर महाराज श्री ने राजस्थान के वाग्वर प्रांत को पावन किया। विक्रम सं० २००१ में आपका पदार्पण धरियावद हुआ। इसी वर्ष धरियावद में ५१ वर्ष की उम्रमें आषाढ़ कृष्ण ६ रविवार दिनांक १-७-१९४५ को समाधि मरण पूर्वक आपका स्वर्गवास हो गया। ऐसे महान प्रभावशाली आचार्य के निधन से समग्र दिगम्बर जैन समाज को गहरा आघात पहुंचा। दिगम्बर जैन समाज पर यह घटना अनभ्र वज्रपात मानी गई। मैं उन महान् त्यागमूर्ति आचार्य श्री के चरणों में अपनी हार्दिक श्रद्धांजलि समर्पित करता हूं।
SR No.010188
Book TitleDigambar Jain Sadhu Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherDharmshrut Granthmala
Publication Year1985
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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