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________________ विपश्यना क्या है ? चेष्टा करने से बचते हुए अपने आपको संतुलित रखना और तदनन्तर जो कुछ करणीय है, शांतिपूर्वक वही करना, यही सम्यक् जीवन-व्यवहार है । यही विपश्यना है। पर को बदलने के प्रयत्न के पूर्व स्व को बदलना ही शुद्ध चित्त का व्यवहार कौशल्य है। यही विपश्यना है। विपश्यना आत्म-संयम है, आत्मसंतुलन है, आत्म-समता है, आत्म-सामायिक है। विपश्यना आत्म-शुद्धि है, आत्म-विमुक्ति है । विकार-विमुक्त शुद्ध चित्त में मैत्री और करुणा का अजस्र झरना अनायास झरता रहता है। यही मानव जीवन की चरम उपलब्धि है । यही विपश्यना साधना की चरम परिणति है । विपश्यना की सिद्धि कठिन अवश्य है, पर असंभव नहीं। कष्ट साध्य अवश्य है, पर असाध्य नहीं। विपश्यना स्व-प्रयत्न साध्य है। केवल एक या एकाधिक विपश्यना शिविरों में सम्मिलित हो जाना ही सब कुछ नहीं है। यह तो जीवन भर का अभ्यास है। विपश्यना का जीवन जीते रहना होगा, सतत् सजग, सतत् सचेष्ट, सतत् सयत्न । ___अतः अदम्य उत्साह के साथ विपश्यना के इस मंगल-पथ पर आगे बढ़ते चलें। गिरते-पड़ते और फिर खड़े होकर, घुटनों को सहलाकर, कपड़ों को झाड़कर आगे बढ़ते चलें। हर फिसलन अगले कदम के लिए नई दृढ़ता और हर ठोकर लक्ष्य तक पहुंचने के लिए नई उमंग और नया उत्साह पैदा करने वाली हो । अतः रुकें नहीं, अटकें नहीं, चलते जायँ । कदम-कदम आगे बढ़ते जायँ । यही मंगल विधान है।
SR No.010186
Book TitleDharm Jivan Jine ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyanarayan Goyanka
PublisherSayaji U B Khin Memorial Trust Mumbai
Publication Year1983
Total Pages119
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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