SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 44
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७. सही कुशल ! ப सही कुशल किस बात में है ? सही कुशल अपने मन को स्वच्छ, साफ रखने में है । उसे मंगल मैत्री से भरे रखने में है । जब हम द्वेष - दौर्मनस्य से भर उठते हैं और कड़वे, कठोर वचन बोलते हैं, तब अपने मन की स्वच्छता खो बैठते हैं । और जब मन की स्वच्छता खो बैठते हैं, तब सुख-शान्ति खो बैठते हैं । जब हम स्नेह सौमनस्य से भर उठते हैं, और मधुर मीठे वचन बोलते हैं, तब अपने मन के मैल से मुक्त रहते हैं । और जब मनके मैल से मुक्त रहते हैं; तब सुख-शान्ति प्राप्त करते हैं । दुर्मन मन औरों को भी दुखी बनाता है । किसी-किसी अवस्था में ओरों को दुखी नहीं भी बना पाए, परन्तु सभी अवस्थाओं में अपने आपको तो दुखी बनाता ही है । जब-जब मन द्वेष- दुर्भावनाओं से दुर्मन हो उठता है, तब तब अनिवार्य रूप से स्वयं बेचैन हो ही उठता है । सुमन मन औरों को भी सुखी बनाता है । किसी किसी अवस्था में औरों को सुखी नहीं भी बना पाये, परन्तु सभी अवस्थाओं में अपने आपको तो सुखी बनाता ही है । जब-जब मन स्नेह सद्भावनाओं से सुमन हो उठता है; तबतब अनिवार्य रूप से स्वयं शान्ति चैन भोगता ही है । सौमनस्यता से भरा हुआ मन स्वयं सुखी रहता है । दौर्मनस्यता से भरा
SR No.010186
Book TitleDharm Jivan Jine ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyanarayan Goyanka
PublisherSayaji U B Khin Memorial Trust Mumbai
Publication Year1983
Total Pages119
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy