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________________ मत कर, मत कर, बावला, मत कर वाद विवाद । खाल बाल की बैंच मत, चाख धर्म का स्वाद ।। कितने दिन यूं ही गए, करते बुद्धि - विलास । धर्म स्वाद चाखा नहीं, बुझी न मन की प्यास ॥ चर्चा ही चर्चा करे, धारण करे न कोय । धर्म बिचारा क्या करे ? धारे ही सुख होय ॥ यही धर्म का नियम है, यही धर्म की रीत । धारे ही निर्मल बने, पावन बने पुनीत । जीवन सारा खो दिया, ग्रन्थ पढ़न्त पढ़न्त । तोते मैना की तरह, नाम रटन्त रटन्त ।। मानव जीवन रतन सा, किया व्यर्थ बरबाद । चर्चा कर ली धर्म की, चाख न पाया स्वाद ।
SR No.010186
Book TitleDharm Jivan Jine ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyanarayan Goyanka
PublisherSayaji U B Khin Memorial Trust Mumbai
Publication Year1983
Total Pages119
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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