SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४. धर्म धारण करें धर्म धारण करने में ही सच्चा कल्याण है। धर्मचर्चा करनी कभी लाभप्रद हो सकती है, कभी लाभप्रद नहीं हो सकती और कभी हानिप्रद भी हो सकती है। धर्मचिन्तन करना कभी लाभप्रद हो सकता है, कभी लाभप्रद नहीं हो सकता और कभी हानिप्रद भी हो सकता है। परन्तु धर्म धारण करना तो सदैव लाभप्रद होता है। धर्मचर्चा करके धर्म के बारे में श्रत-ज्ञान प्राप्त किया जाता है। यह हमें प्रेरणा और मार्गदर्शन दे और फलतः हम धर्म धारण कर लें तो धर्मचर्चा हमारे लाभ का कारण बनती है। परन्तु जब इससे हम केवल बुद्धिविलास करके ही रह जायँ तो धर्मचर्चा हमारे लिए लाभप्रद नहीं होती। जब यही श्रुत-ज्ञान हममें ज्ञानी होने का मिथ्या दम्भ पैदा कर दे तो धर्मचर्चा हमारी हानि का कारण बन जाती है। यही बात धर्म चिंतन की है। धर्म का चिंतन-मनन बौद्धिक ज्ञान पैदा करके निरर्थक बुद्धिविलास का कारण बनता है । अथवा थोथा दम्भ पैदा करके हानि का कारण बनता है। परन्तु जब यही चिन्तन-ज्ञान धर्म धारण करने की प्रेरणा पैदा करे, मार्ग-दर्शन दे और फलतः हम धर्म धारण कर लें तो कल्याण का कारण बन जाता है। वास्तविक कल्याण तो धर्म धारण करने में ही है। मिथ्या बुद्धिविलास में नहीं । मिथ्या दम्भ में नहीं। ___अतः साधको, आओ ! धर्म धारण करें ! धर्म धारण कर स्वयं शीलवान बनें ! समाधिवान बनें ! प्रज्ञावान बनें ! यही मंगल मूल है।
SR No.010186
Book TitleDharm Jivan Jine ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyanarayan Goyanka
PublisherSayaji U B Khin Memorial Trust Mumbai
Publication Year1983
Total Pages119
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy