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________________ जैन धर्म की प्राचीनता व उत्तमता के विषय में अजैन सुप्रसिद्ध विद्वानों की सम्मतियें । - श्रीयुत्न मझमहोपाध्याय डाक्टर साशचन्द्र विद्या भूपण एम० ए० पी० एच० डी० एफ० आई० आर० एस० सिद्धांत महोदधि प्रिंसपिल संस्कृत कालिन कलकत्ता। __.. आपने २६ दिसम्बर सन् १९१३ को काशी ( वनारस ) नगर में जैन धर्म के विषय व्याख्यान दिया उसका सार रूप कुछ वाक्य उडत करते है। .. .. .. . . म साधु-एक प्रशंसनीय जीवन व्यतीत करने के द्वारा पूर्ण रीति से व्रत, निवम और इन्द्रय संयम का पालन करता हुमा जगत के सम्मुख धात्म संयम का एक बड़ा ही उत्तम. आदर्श पम्लुन करता है। प्राकृत भाषा अपने सम्पूर्ण मधुमय कौन्दर्य को लिए हुए मनियों को रचना में ही प्रगट की गई है। श्रीयस महा महोपाध्याय सत्य सम्पदाया चार्य सर्वान्वर पंडित स्वामी रामामिश्र जी शास्त्री भूत्र प्रोफेसर संस्कृत कालेज बनारस। . . . . - आपने मि० पाप शु० १ सं० १९६२ को काशीनगर में व्याख्यान दिया उस में के कुछ वाक्य उद्धृव करते हैं ।। ., (१) शान, बैराग्य, शांति, क्षन्ति, अदम्भ अनीW, अक्रोध अनात्सयं, अलोलुपता, शम, दम,अहिंसा, समदृष्ठि इत्यादि गुणों में एक एक गुण ऐसा है कि जहां वह पाया जाय यहां पर बुद्धिमान पूजा करने ललते हैं। तब तो जहां ये (अर्थात् जैनी में) पर्वोक्त सब गण निरतिशय सीम होकर विराजमान है उनकी पूजा न करना अथवा ऐसे गुण पूजकों की पूजा में बाधा डालना क्या इन्सानियत का कार्य है?
SR No.010185
Book TitleDharm Jain Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarkaprasad Jain
PublisherMahavir Digambar Jain Mandir Aligarh
Publication Year1926
Total Pages151
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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